yajurveda/9/33
ऋषिः - तापस ऋषिः
देवता - मित्रादयो मन्त्रोक्ता देवताः
छन्दः - कृति,
स्वरः - निषादः
मि॒त्रः। नवा॑क्षरे॒णेति॒ नव॑ऽअक्षरेण। त्रि॒वृत॒मिति॒ त्रि॒ऽवृत॑म्। स्तोम॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒त्। तम्। उत्। जे॒ष॒म्। वरु॑णः। दशा॑क्षरे॒णेति॒ दश॑ऽअक्षरेण। वि॒राज॒मिति॒ वि॒ऽराज॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒त्। ताम्। उत्। जे॒ष॒म्। इन्द्रः॑। एका॑दशाक्षरे॒णेत्येका॑दशऽअक्षरेण। त्रि॒ष्टुभ॑म्। त्रि॒स्तुभ॒मिति॑ त्रि॒ऽस्तुभ॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒त्। ताम्। उत्। जे॒ष॒म्। विश्वे॑। दे॒वाः। द्वाद॑शाक्षरे॒णेति॒ द्वाद॑शऽअक्षरेण। जग॑तीम्। उत्। अ॒ज॒य॒न्। ताम्। उत्। जे॒ष॒म् ॥३३॥
मित्रः। नवाक्षरेणेति नवऽअक्षरेण। त्रिवृतमिति त्रिऽवृतम्। स्तोमम्। उत्। अजयत्। तम्। उत्। जेषम्। वरुणः। दशाक्षरेणेति दशऽअक्षरेण। विराजमिति विऽराजम्। उत्। अजयत्। ताम्। उत्। जेषम्। इन्द्रः। एकादशाक्षरेणेत्येकादशऽअक्षरेण। त्रिष्टुभम्। त्रिस्तुभमिति त्रिऽस्तुभम्। उत्। अजयत्। ताम्। उत्। जेषम्। विश्वे। देवाः। द्वादशाक्षरेणेति द्वादशऽअक्षरेण। जगतीम्। उत्। अजयन्। ताम्। उत्। जेषम् ॥३३॥