yajurveda/9/28

अग्ने॒ऽअच्छा॑ वदे॒ह नः॒ प्रति॑ नः सु॒मना॑ भव। प्र नो॑ यच्छ सहस्रजि॒त् त्वꣳ हि ध॑न॒दाऽअसि॒ स्वाहा॑॥२८॥

अग्ने॑। अच्छ॑। व॒द॒। इ॒ह। नः॒। प्रति॑। नः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। भ॒व॒। प्र। नः॒। य॒च्छ॒। स॒ह॒स्र॒जि॒दिति॑ सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। ध॒न॒दा॒ इति॑ धन॒ऽदाः। असि॒। स्वाहा॑ ॥२८॥

ऋषिः - तापस ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - भूरिक अनुष्टुप्,

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

अग्ने॒ऽअच्छा॑ वदे॒ह नः॒ प्रति॑ नः सु॒मना॑ भव। प्र नो॑ यच्छ सहस्रजि॒त् त्वꣳ हि ध॑न॒दाऽअसि॒ स्वाहा॑॥२८॥

स्वर सहित पद पाठ

अग्ने॑। अच्छ॑। व॒द॒। इ॒ह। नः॒। प्रति॑। नः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। भ॒व॒। प्र। नः॒। य॒च्छ॒। स॒ह॒स्र॒जि॒दिति॑ सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। ध॒न॒दा॒ इति॑ धन॒ऽदाः। असि॒। स्वाहा॑ ॥२८॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्नेऽअच्छा वदेह नः प्रति नः सुमना भव। प्र नो यच्छ सहस्रजित् त्वꣳ हि धनदाऽअसि स्वाहा॥२८॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने। अच्छ। वद। इह। नः। प्रति। नः। सुमना इति सुऽमनाः। भव। प्र। नः। यच्छ। सहस्रजिदिति सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। धनदा इति धनऽदाः। असि। स्वाहा ॥२८॥