yajurveda/8/50

उ॒शिक् त्वं दे॑व सोमा॒ग्नेः प्रि॒यं पाथोऽपी॑हि व॒शी त्वं दे॑व सो॒मेन्द्र॑स्य प्रि॒यं पाथोऽपी॑ह्य॒स्मत्स॑खा॒ त्वं दे॑व सोम॒ विश्वे॑षां दे॒वानां॑ प्रि॒यं पाथोऽपी॑हि॥५०॥

उ॒शिक्। त्वम्। दे॒व॒। सो॒म॒। अ॒ग्नेः। प्रि॒यम्। पाथः॑। अपि॑। इ॒हि॒। व॒शी। त्वम्। दे॒व। सो॒म॒। इन्द्र॑स्य। प्रि॒यम्। पाथः॑। अपि॑। इ॒हि॒। अ॒स्मत्स॒खेत्य॒स्मत्ऽसखा॑। त्वम्। दे॒व॒। सो॒म॒। विश्वे॑षाम्। दे॒वाना॑म्। प्रि॒यम्। पाथः॑। अपि॑। इ॒हि॒ ॥५०॥

ऋषिः - देवा ऋषयः

देवता - प्रजापतयो देवताः

छन्दः - भूरिक् आर्षी जगती,

स्वरः - निषादः

स्वर सहित मन्त्र

उ॒शिक् त्वं दे॑व सोमा॒ग्नेः प्रि॒यं पाथोऽपी॑हि व॒शी त्वं दे॑व सो॒मेन्द्र॑स्य प्रि॒यं पाथोऽपी॑ह्य॒स्मत्स॑खा॒ त्वं दे॑व सोम॒ विश्वे॑षां दे॒वानां॑ प्रि॒यं पाथोऽपी॑हि॥५०॥

स्वर सहित पद पाठ

उ॒शिक्। त्वम्। दे॒व॒। सो॒म॒। अ॒ग्नेः। प्रि॒यम्। पाथः॑। अपि॑। इ॒हि॒। व॒शी। त्वम्। दे॒व। सो॒म॒। इन्द्र॑स्य। प्रि॒यम्। पाथः॑। अपि॑। इ॒हि॒। अ॒स्मत्स॒खेत्य॒स्मत्ऽसखा॑। त्वम्। दे॒व॒। सो॒म॒। विश्वे॑षाम्। दे॒वाना॑म्। प्रि॒यम्। पाथः॑। अपि॑। इ॒हि॒ ॥५०॥


स्वर रहित मन्त्र

उशिक् त्वं देव सोमाग्नेः प्रियं पाथोऽपीहि वशी त्वं देव सोमेन्द्रस्य प्रियं पाथोऽपीह्यस्मत्सखा त्वं देव सोम विश्वेषां देवानां प्रियं पाथोऽपीहि॥५०॥


स्वर रहित पद पाठ

उशिक्। त्वम्। देव। सोम। अग्नेः। प्रियम्। पाथः। अपि। इहि। वशी। त्वम्। देव। सोम। इन्द्रस्य। प्रियम्। पाथः। अपि। इहि। अस्मत्सखेत्यस्मत्ऽसखा। त्वम्। देव। सोम। विश्वेषाम्। देवानाम्। प्रियम्। पाथः। अपि। इहि ॥५०॥