yajurveda/8/49

क॒कु॒भꣳ रू॒पं वृ॑ष॒भस्य॑ रोचते बृ॒हच्छु॒क्रः शु॒क्रस्य॑ पुरो॒गाः सोमः॒ सोम॑स्य पुरो॒गाः। यत्ते॑ सो॒मादा॑भ्यं॒ नाम॒ जागृ॑वि॒ तस्मै॑ त्वा गृह्णामि॒ तस्मै ते सोम॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॑॥४९॥

क॒कु॒भम्। रू॒पम्। वृ॒ष॒भस्य॑। रो॒च॒ते॒। बृ॒हत्। शुक्रः। शु॒क्रस्य॑। पु॒रो॒गा इति॑ पुरः॒ऽगाः। सोमः॑। सोम॑स्य। पु॒रो॒गा इति॑ पुरः॒ऽगाः। यत्। ते॒। सो॒म॒। अदा॑भ्यम्। नाम॑। जागृ॑वि। तस्मै॑। त्वा॒। गृ॒ह्णा॒मि॒। तस्मै॑। ते॒। सोम॑। सोमा॑य। स्वाहा॑ ॥४९॥

ऋषिः - देवा ऋषयः

देवता - विश्वेदेवा प्रजापतयो देवताः

छन्दः - विराट प्राजापत्या जगती,निचृत् आर्षी उष्णिक्,

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

क॒कु॒भꣳ रू॒पं वृ॑ष॒भस्य॑ रोचते बृ॒हच्छु॒क्रः शु॒क्रस्य॑ पुरो॒गाः सोमः॒ सोम॑स्य पुरो॒गाः। यत्ते॑ सो॒मादा॑भ्यं॒ नाम॒ जागृ॑वि॒ तस्मै॑ त्वा गृह्णामि॒ तस्मै ते सोम॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॑॥४९॥

स्वर सहित पद पाठ

क॒कु॒भम्। रू॒पम्। वृ॒ष॒भस्य॑। रो॒च॒ते॒। बृ॒हत्। शुक्रः। शु॒क्रस्य॑। पु॒रो॒गा इति॑ पुरः॒ऽगाः। सोमः॑। सोम॑स्य। पु॒रो॒गा इति॑ पुरः॒ऽगाः। यत्। ते॒। सो॒म॒। अदा॑भ्यम्। नाम॑। जागृ॑वि। तस्मै॑। त्वा॒। गृ॒ह्णा॒मि॒। तस्मै॑। ते॒। सोम॑। सोमा॑य। स्वाहा॑ ॥४९॥


स्वर रहित मन्त्र

ककुभꣳ रूपं वृषभस्य रोचते बृहच्छुक्रः शुक्रस्य पुरोगाः सोमः सोमस्य पुरोगाः। यत्ते सोमादाभ्यं नाम जागृवि तस्मै त्वा गृह्णामि तस्मै ते सोम सोमाय स्वाहा॥४९॥


स्वर रहित पद पाठ

ककुभम्। रूपम्। वृषभस्य। रोचते। बृहत्। शुक्रः। शुक्रस्य। पुरोगा इति पुरःऽगाः। सोमः। सोमस्य। पुरोगा इति पुरःऽगाः। यत्। ते। सोम। अदाभ्यम्। नाम। जागृवि। तस्मै। त्वा। गृह्णामि। तस्मै। ते। सोम। सोमाय। स्वाहा ॥४९॥