yajurveda/8/31

मरु॑तो॒ यस्य॒ हि क्षये॑ पा॒था दि॒वो वि॑महसः। स सु॑गो॒पात॑मो॒ जनः॑॥३१॥

मरु॑तः। यस्य॑। हि। क्षये॑। पा॒थ। दि॒वः। वि॒म॒ह॒स॒ इति॑ विऽमहसः। सः। सु॒गो॒पात॑म॒ इति॑ सुऽगो॒पात॑मः। जनः॑ ॥३१॥

ऋषिः - गोतम ऋषिः

देवता - दम्पती देवते

छन्दः - आर्षी गायत्री

स्वरः - षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

मरु॑तो॒ यस्य॒ हि क्षये॑ पा॒था दि॒वो वि॑महसः। स सु॑गो॒पात॑मो॒ जनः॑॥३१॥

स्वर सहित पद पाठ

मरु॑तः। यस्य॑। हि। क्षये॑। पा॒थ। दि॒वः। वि॒म॒ह॒स॒ इति॑ विऽमहसः। सः। सु॒गो॒पात॑म॒ इति॑ सुऽगो॒पात॑मः। जनः॑ ॥३१॥


स्वर रहित मन्त्र

मरुतो यस्य हि क्षये पाथा दिवो विमहसः। स सुगोपातमो जनः॥३१॥


स्वर रहित पद पाठ

मरुतः। यस्य। हि। क्षये। पाथ। दिवः। विमहस इति विऽमहसः। सः। सुगोपातम इति सुऽगोपातमः। जनः ॥३१॥