yajurveda/7/11

या वां॒ कशा॒ मधु॑म॒त्यश्वि॑ना सू॒नृता॑वती। तया॑ य॒ज्ञं मि॑मिक्षितम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्य॒श्विभ्यां॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॒र्माध्वी॑भ्यां त्वा॥११॥

या। वा॒म्। कशा॑। मधु॑मतीति॒ मधु॑ऽमती। अश्वि॑ना। सू॒नृताव॒तीति॑ सू॒नृता॑ऽवती। तया॑। य॒ज्ञम्। मि॒मि॒क्ष॒त॒म्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। अ॒श्विभ्या॒मि॒त्य॒श्विऽभ्या॑म्। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। माध्वी॑भ्याम्। त्वा॒ ॥११॥

ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः

देवता - अश्विनौ देवते

छन्दः - ब्राह्मी उष्णिक्,

स्वरः - ऋषभः

स्वर सहित मन्त्र

या वां॒ कशा॒ मधु॑म॒त्यश्वि॑ना सू॒नृता॑वती। तया॑ य॒ज्ञं मि॑मिक्षितम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्य॒श्विभ्यां॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॒र्माध्वी॑भ्यां त्वा॥११॥

स्वर सहित पद पाठ

या। वा॒म्। कशा॑। मधु॑मतीति॒ मधु॑ऽमती। अश्वि॑ना। सू॒नृताव॒तीति॑ सू॒नृता॑ऽवती। तया॑। य॒ज्ञम्। मि॒मि॒क्ष॒त॒म्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। अ॒श्विभ्या॒मि॒त्य॒श्विऽभ्या॑म्। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। माध्वी॑भ्याम्। त्वा॒ ॥११॥


स्वर रहित मन्त्र

या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षितम्। उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा॥११॥


स्वर रहित पद पाठ

या। वाम्। कशा। मधुमतीति मधुऽमती। अश्विना। सूनृतावतीति सूनृताऽवती। तया। यज्ञम्। मिमिक्षतम्। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। त्वा। एषः। ते। योनिः। माध्वीभ्याम्। त्वा ॥११॥