yajurveda/6/22

मापो मौष॑धीर्हिꣳसी॒र्धाम्नो॑ धाम्नो राजँ॒स्ततो॑ वरुण नो मुञ्च। यदा॒हुर॒घ्न्याऽइति॒ वरु॒णेति॒ शपा॑महे॒ ततो॑ वरुण नो मुञ्च। सु॒मि॒त्रि॒या न॒ऽआप॒ऽओष॑धयः सन्तु दुर्मित्रि॒यास्तस्मै॑ सन्तु॒ योऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं च॑ व॒यं द्वि॒ष्मः॥२२॥

मा। अ॒पः। मा। ओष॑धीः। हि॒ꣳसीः॒। धाम्नो॑धाम्न॒ इति॑ धाम्नः॑ऽधाम्नः। रा॒ज॒न्। ततः॑। व॒रु॒ण। नः॒। मु॒ञ्च॒। यत्। आ॒हुः॒। अ॒घ्न्याः। इति॑। वरु॑ण। इति॑। शपा॑महे। ततः॑। व॒रु॒ण॒। नः॒। मु॒ञ्च॒। सु॒मि॒त्रि॒या इति॑ सु॑ऽमि॒त्रि॒याः। नः॒। आपः॑। ओष॑धयः। स॒न्तु॒। दु॒र्मि॒त्रि॒या इति॑ दुःऽमित्रि॒याः। तस्मै॑। स॒न्तु॒। यः। अस्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। च॒। व॒यम्। द्वि॒ष्मः ॥२२॥

ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः

देवता - वरुणो देवता

छन्दः - ब्राह्मी स्वराट् उष्णिक्,निचृत् अनुष्टुप्,

स्वरः - ऋषभः, षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

मापो मौष॑धीर्हिꣳसी॒र्धाम्नो॑ धाम्नो राजँ॒स्ततो॑ वरुण नो मुञ्च। यदा॒हुर॒घ्न्याऽइति॒ वरु॒णेति॒ शपा॑महे॒ ततो॑ वरुण नो मुञ्च। सु॒मि॒त्रि॒या न॒ऽआप॒ऽओष॑धयः सन्तु दुर्मित्रि॒यास्तस्मै॑ सन्तु॒ योऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं च॑ व॒यं द्वि॒ष्मः॥२२॥

स्वर सहित पद पाठ

मा। अ॒पः। मा। ओष॑धीः। हि॒ꣳसीः॒। धाम्नो॑धाम्न॒ इति॑ धाम्नः॑ऽधाम्नः। रा॒ज॒न्। ततः॑। व॒रु॒ण। नः॒। मु॒ञ्च॒। यत्। आ॒हुः॒। अ॒घ्न्याः। इति॑। वरु॑ण। इति॑। शपा॑महे। ततः॑। व॒रु॒ण॒। नः॒। मु॒ञ्च॒। सु॒मि॒त्रि॒या इति॑ सु॑ऽमि॒त्रि॒याः। नः॒। आपः॑। ओष॑धयः। स॒न्तु॒। दु॒र्मि॒त्रि॒या इति॑ दुःऽमित्रि॒याः। तस्मै॑। स॒न्तु॒। यः। अस्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। च॒। व॒यम्। द्वि॒ष्मः ॥२२॥


स्वर रहित मन्त्र

मापो मौषधीर्हिꣳसीर्धाम्नो धाम्नो राजँस्ततो वरुण नो मुञ्च। यदाहुरघ्न्याऽइति वरुणेति शपामहे ततो वरुण नो मुञ्च। सुमित्रिया नऽआपऽओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥२२॥


स्वर रहित पद पाठ

मा। अपः। मा। ओषधीः। हिꣳसीः। धाम्नोधाम्न इति धाम्नःऽधाम्नः। राजन्। ततः। वरुण। नः। मुञ्च। यत्। आहुः। अघ्न्याः। इति। वरुण। इति। शपामहे। ततः। वरुण। नः। मुञ्च। सुमित्रिया इति सुऽमित्रियाः। नः। आपः। ओषधयः। सन्तु। दुर्मित्रिया इति दुःऽमित्रियाः। तस्मै। सन्तु। यः। अस्मान्। द्वेष्टि। यम्। च। वयम्। द्विष्मः ॥२२॥