yajurveda/6/18
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - प्राजापत्या अनुष्टुप्,आर्ची पङ्क्ति,दैवी पङ्क्ति,
स्वरः - गान्धारः, पञ्चमः
सम्। ते। मनः॑। मन॑सा। सम्। प्रा॒णः। प्रा॒णेन॑। ग॒च्छ॒ता॒म्। रे॒ट्। अ॒सि॒। अ॒ग्निः। त्वा॒। श्री॒णा॒तु॒। आपः॑। त्वा॒। सम्। अ॒रि॒ण॒न्। वातस्य। त्वा॒। ध्राज्यै॑। पू॒ष्णः। रह्यै॑। ऊ॒ष्मणः॑। व्य॒थि॒ष॒त्। प्रयु॑त॒मिति॒ प्रऽयु॑त॒म्। द्वेषः॑ ॥१८॥
सम्। ते। मनः। मनसा। सम्। प्राणः। प्राणेन। गच्छताम्। रेट्। असि। अग्निः। त्वा। श्रीणातु। आपः। त्वा। सम्। अरिणन्। वातस्य। त्वा। ध्राज्यै। पूष्णः। रह्यै। ऊष्मणः। व्यथिषत्। प्रयुतमिति प्रऽयुतम्। द्वेषः ॥१८॥