yajurveda/40/17

हि॒र॒ण्मये॑न॒ पात्रे॑ण स॒त्यस्यापि॑हितं॒ मुखम्।यो॒ऽसावा॑दि॒त्ये पु॑रुषः॒ सोऽसाव॒हम्। ओ३म् खं ब्रह्म॑॥१७॥

हि॒र॒ण्मये॑न॒। पात्रे॑ण। स॒त्यस्य॑। अपि॑हित॒मित्यपि॑ऽहितम्। मुख॑म् ॥ यः। अ॒सौ। आ॒दि॒त्ये। पुरु॑षः। सः। अ॒सौ। अ॒हम्। ओ३म्। खम्। ब्रह्म॑ ॥१७ ॥

ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः

देवता - आत्मा देवता

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

हि॒र॒ण्मये॑न॒ पात्रे॑ण स॒त्यस्यापि॑हितं॒ मुखम्।यो॒ऽसावा॑दि॒त्ये पु॑रुषः॒ सोऽसाव॒हम्। ओ३म् खं ब्रह्म॑॥१७॥

स्वर सहित पद पाठ

हि॒र॒ण्मये॑न॒। पात्रे॑ण। स॒त्यस्य॑। अपि॑हित॒मित्यपि॑ऽहितम्। मुख॑म् ॥ यः। अ॒सौ। आ॒दि॒त्ये। पुरु॑षः। सः। अ॒सौ। अ॒हम्। ओ३म्। खम्। ब्रह्म॑ ॥१७ ॥


स्वर रहित मन्त्र

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म॥१७॥


स्वर रहित पद पाठ

हिरण्मयेन। पात्रेण। सत्यस्य। अपिहितमित्यपिऽहितम्। मुखम् ॥ यः। असौ। आदित्ये। पुरुषः। सः। असौ। अहम्। ओ३म्। खम्। ब्रह्म ॥१७ ॥