yajurveda/4/28

परि॑ माग्ने॒ दुश्च॑रिताद् बाध॒स्वा मा॒ सुच॑रिते भज। उदायु॑षा स्वा॒युषोद॑स्थाम॒मृताँ॒२ऽअनु॑॥२८॥

परि॑। मा॒। अ॒ग्ने॒। दुश्च॑रिता॒दिति॒ दुःऽच॑रितात्। बा॒ध॒स्व॒। आ। मा॒। सुच॑रित॒ इति॒ सुऽच॑रिते। भ॒ज॒। उत्। आयु॑षा। स्वा॒युषेति॑ सुऽआ॒युषा॑। उत्। अ॒स्था॒म्। अ॒मृता॑न्। अनु॑ ॥२८॥

ऋषिः - वत्स ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - साम्नी बृहती,साम्नी उष्णिक्,

स्वरः - मध्यमः

स्वर सहित मन्त्र

परि॑ माग्ने॒ दुश्च॑रिताद् बाध॒स्वा मा॒ सुच॑रिते भज। उदायु॑षा स्वा॒युषोद॑स्थाम॒मृताँ॒२ऽअनु॑॥२८॥

स्वर सहित पद पाठ

परि॑। मा॒। अ॒ग्ने॒। दुश्च॑रिता॒दिति॒ दुःऽच॑रितात्। बा॒ध॒स्व॒। आ। मा॒। सुच॑रित॒ इति॒ सुऽच॑रिते। भ॒ज॒। उत्। आयु॑षा। स्वा॒युषेति॑ सुऽआ॒युषा॑। उत्। अ॒स्था॒म्। अ॒मृता॑न्। अनु॑ ॥२८॥


स्वर रहित मन्त्र

परि माग्ने दुश्चरिताद् बाधस्वा मा सुचरिते भज। उदायुषा स्वायुषोदस्थाममृताँ२ऽअनु॥२८॥


स्वर रहित पद पाठ

परि। मा। अग्ने। दुश्चरितादिति दुःऽचरितात्। बाधस्व। आ। मा। सुचरित इति सुऽचरिते। भज। उत्। आयुषा। स्वायुषेति सुऽआयुषा। उत्। अस्थाम्। अमृतान्। अनु ॥२८॥