yajurveda/4/2
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - आपो देवता
छन्दः - स्वराट् ब्राह्मी त्रिष्टुप्,
स्वरः - धैवतः
आपः॑। अ॒स्मान्। मा॒तरः॑। शु॒न्ध॒य॒न्तु॒। घृ॒तेन॑। नः॒। घृ॒त॒प्व᳖ इति॑ घृतऽप्वः॒। पु॒न॒न्तु॒। विश्व॑म्। हि। रि॒प्रम्। प्र॒वह॒न्तीति॑ प्र॒ऽवह॑न्ति। दे॒वीः। उत्। इत्। आ॒भ्यः॒। शुचिः॑। आ। पू॒तः। ए॒मि॒। दी॒क्षा॒त॒पसोः॑। त॒नूः। अ॒सि॒। ताम्। त्वा॒। शि॒वाम्। श॒ग्माम्। परि॑। द॒धे॒। भ॒द्रम्। वर्ण॑म्। पुष्य॑न् ॥२॥
आपः। अस्मान्। मातरः। शुन्धयन्तु। घृतेन। नः। घृतप्व᳖ इति घृतऽप्वः। पुनन्तु। विश्वम्। हि। रिप्रम्। प्रवहन्तीति प्रऽवहन्ति। देवीः। उत्। इत्। आभ्यः। शुचिः। आ। पूतः। एमि। दीक्षातपसोः। तनूः। असि। ताम्। त्वा। शिवाम्। शग्माम्। परि। दधे। भद्रम्। वर्णम्। पुष्यन् ॥२॥