yajurveda/38/6
ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः
देवता - अश्विनौ देवते
छन्दः - निचृदत्यष्टिः
स्वरः - गान्धारः
गा॒य॒त्रम्। छन्दः॑। अ॒सि॒। त्रैष्टु॑भम्। त्रैस्तु॑भ॒मिति॒ त्रैस्तु॑भम्। छन्दः॑। अ॒सि॒। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। त्वा॒। परि॑। गृ॒ह्णा॒मि॒। अ॒न्तरि॑क्षेण। उप॑। य॒च्छा॒मि॒ ॥ इन्द्र॑। अ॒श्वि॒ना॒। मधु॑नः। सा॒र॒घस्य॑। घ॒र्मम्। पा॒त॒। वस॑वः। यज॑त। वाट् ॥ स्वाहा॑। सूर्य॑स्य। र॒श्मये॑। वृ॒ष्टि॒वन॑य॒ इति॑ वृष्टि॒ऽवन॑ये ॥६ ॥
गायत्रम्। छन्दः। असि। त्रैष्टुभम्। त्रैस्तुभमिति त्रैस्तुभम्। छन्दः। असि। द्यावापृथिवीभ्याम्। त्वा। परि। गृह्णामि। अन्तरिक्षेण। उप। यच्छामि ॥ इन्द्र। अश्विना। मधुनः। सारघस्य। घर्मम्। पात। वसवः। यजत। वाट् ॥ स्वाहा। सूर्यस्य। रश्मये। वृष्टिवनय इति वृष्टिऽवनये ॥६ ॥