yajurveda/38/23

सु॒मि॒त्रि॒या न॒ऽ आप॒ऽ ओष॑धयः सन्तु दुर्मित्रि॒यास्तस्मै॑ सन्तु॒।योऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं च॑ व॒यं द्वि॒ष्मः॥२३॥

सु॒मि॒त्रि॒या इति॑ सुऽमि॒त्रि॒याः। नः॒। आपः॑। ओष॑धयः। स॒न्तु॒। दु॒र्मि॒त्रि॒या इति॑ दुःमित्रि॒याः। तस्मै॑। स॒न्तु॒ ॥ यः। अ॒स्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। च॒। व॒यम्। द्वि॒ष्मः ॥२३ ॥

ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः

देवता - आपो देवताः

छन्दः - निचृदनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

सु॒मि॒त्रि॒या न॒ऽ आप॒ऽ ओष॑धयः सन्तु दुर्मित्रि॒यास्तस्मै॑ सन्तु॒।योऽस्मान् द्वेष्टि॒ यं च॑ व॒यं द्वि॒ष्मः॥२३॥

स्वर सहित पद पाठ

सु॒मि॒त्रि॒या इति॑ सुऽमि॒त्रि॒याः। नः॒। आपः॑। ओष॑धयः। स॒न्तु॒। दु॒र्मि॒त्रि॒या इति॑ दुःमित्रि॒याः। तस्मै॑। स॒न्तु॒ ॥ यः। अ॒स्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। च॒। व॒यम्। द्वि॒ष्मः ॥२३ ॥


स्वर रहित मन्त्र

सुमित्रिया नऽ आपऽ ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु।योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥२३॥


स्वर रहित पद पाठ

सुमित्रिया इति सुऽमित्रियाः। नः। आपः। ओषधयः। सन्तु। दुर्मित्रिया इति दुःमित्रियाः। तस्मै। सन्तु ॥ यः। अस्मान्। द्वेष्टि। यम्। च। वयम्। द्विष्मः ॥२३ ॥