yajurveda/35/4

अ॒श्व॒त्थे वो॑ नि॒षद॑नं प॒र्णे वो॑ वस॒तिष्कृ॒ता।गो॒भाज॒ऽइत्किला॑सथ॒ यत्स॒नव॑थ॒ पू॑रुषम्॥४॥

अ॒श्व॒त्थे। वः॒। नि॒षद॑नम्। नि॒सद॑न॒मिति॑ नि॒ऽसद॑नम्। प॒र्णे। वः॒। व॒स॒तिः। कृ॒ता ॥ गो॒भाज॒ इति॑ गो॒ऽभाजः॑। इ॒त्। किल॑। अ॒स॒थ॒। यत्। स॒नव॑थ। पूरु॑षम्। पुरु॑ष॒मिति॒ पुरु॑षम् ॥४ ॥

ऋषिः - आदित्या देवा वा ऋषयः

देवता - वायुसवितारौ देवते

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

अ॒श्व॒त्थे वो॑ नि॒षद॑नं प॒र्णे वो॑ वस॒तिष्कृ॒ता।गो॒भाज॒ऽइत्किला॑सथ॒ यत्स॒नव॑थ॒ पू॑रुषम्॥४॥

स्वर सहित पद पाठ

अ॒श्व॒त्थे। वः॒। नि॒षद॑नम्। नि॒सद॑न॒मिति॑ नि॒ऽसद॑नम्। प॒र्णे। वः॒। व॒स॒तिः। कृ॒ता ॥ गो॒भाज॒ इति॑ गो॒ऽभाजः॑। इ॒त्। किल॑। अ॒स॒थ॒। यत्। स॒नव॑थ। पूरु॑षम्। पुरु॑ष॒मिति॒ पुरु॑षम् ॥४ ॥


स्वर रहित मन्त्र

अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।गोभाजऽइत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्॥४॥


स्वर रहित पद पाठ

अश्वत्थे। वः। निषदनम्। निसदनमिति निऽसदनम्। पर्णे। वः। वसतिः। कृता ॥ गोभाज इति गोऽभाजः। इत्। किल। असथ। यत्। सनवथ। पूरुषम्। पुरुषमिति पुरुषम् ॥४ ॥