yajurveda/35/15

इ॒मं जी॒वेभ्यः॑ परि॒धिं द॑धामि॒ मैषां॒ नु गा॒दप॑रो॒ऽअर्थ॑मे॒तम्।श॒तं जी॑वन्तु श॒रदः॑ पुरू॒चीर॒न्तर्मृ॒त्युं द॑धतां॒ पर्व॑तेन॥१५॥

इ॒मम्। जी॒वेभ्यः॑। प॒रि॒धिमिति॑ परि॒ऽधिम्। द॒धा॒मि॒। मा। ए॒षा॒म्। नु। गा॒त्। अप॑रः। अर्थ॑म्। ए॒तम् ॥ श॒तम्। जी॒व॒न्तु॒। श॒रदः॑। पु॒रू॒चीः। अ॒न्तः। मृ॒त्युम्। द॒ध॒ता॒म्। पर्व॑तेन ॥१५ ॥

ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

इ॒मं जी॒वेभ्यः॑ परि॒धिं द॑धामि॒ मैषां॒ नु गा॒दप॑रो॒ऽअर्थ॑मे॒तम्।श॒तं जी॑वन्तु श॒रदः॑ पुरू॒चीर॒न्तर्मृ॒त्युं द॑धतां॒ पर्व॑तेन॥१५॥

स्वर सहित पद पाठ

इ॒मम्। जी॒वेभ्यः॑। प॒रि॒धिमिति॑ परि॒ऽधिम्। द॒धा॒मि॒। मा। ए॒षा॒म्। नु। गा॒त्। अप॑रः। अर्थ॑म्। ए॒तम् ॥ श॒तम्। जी॒व॒न्तु॒। श॒रदः॑। पु॒रू॒चीः। अ॒न्तः। मृ॒त्युम्। द॒ध॒ता॒म्। पर्व॑तेन ॥१५ ॥


स्वर रहित मन्त्र

इमं जीवेभ्यः परिधिं दधामि मैषां नु गादपरोऽअर्थमेतम्।शतं जीवन्तु शरदः पुरूचीरन्तर्मृत्युं दधतां पर्वतेन॥१५॥


स्वर रहित पद पाठ

इमम्। जीवेभ्यः। परिधिमिति परिऽधिम्। दधामि। मा। एषाम्। नु। गात्। अपरः। अर्थम्। एतम् ॥ शतम्। जीवन्तु। शरदः। पुरूचीः। अन्तः। मृत्युम्। दधताम्। पर्वतेन ॥१५ ॥