yajurveda/34/58

ब्रह्म॑णस्पते॒ त्वम॒स्य य॒न्ता सू॒क्तस्य॑ बोधि॒ तन॑यं च जिन्व।विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑।य इ॒मा विश्वा॑। वि॒श्वक॑र्म्मा। यो नः॑ पि॒ता।अन्न॑प॒तेऽन्न॑स्य नो देहि॥५८॥

ब्रह्म॑णः। प॒ते॒। त्वम्। अ॒स्य। य॒न्ता। सू॒क्तस्येति॑ सुऽउ॒क्तस्य॑। बो॒धि॒। तन॑यम्। च॒। जि॒न्व ॥ विश्व॑म्। तत्। भ॒द्रम्। यत्। अव॑न्ति। दे॒वाः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒वीरा॒ इति॑ सु॒ऽवीराः॑ ॥५८ ॥

ऋषिः - गृत्समद ऋषिः

देवता - ब्रह्मणस्पतिर्देवता

छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

ब्रह्म॑णस्पते॒ त्वम॒स्य य॒न्ता सू॒क्तस्य॑ बोधि॒ तन॑यं च जिन्व।विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑।य इ॒मा विश्वा॑। वि॒श्वक॑र्म्मा। यो नः॑ पि॒ता।अन्न॑प॒तेऽन्न॑स्य नो देहि॥५८॥

स्वर सहित पद पाठ

ब्रह्म॑णः। प॒ते॒। त्वम्। अ॒स्य। य॒न्ता। सू॒क्तस्येति॑ सुऽउ॒क्तस्य॑। बो॒धि॒। तन॑यम्। च॒। जि॒न्व ॥ विश्व॑म्। तत्। भ॒द्रम्। यत्। अव॑न्ति। दे॒वाः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒वीरा॒ इति॑ सु॒ऽवीराः॑ ॥५८ ॥


स्वर रहित मन्त्र

ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व।विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः।य इमा विश्वा। विश्वकर्म्मा। यो नः पिता।अन्नपतेऽन्नस्य नो देहि॥५८॥


स्वर रहित पद पाठ

ब्रह्मणः। पते। त्वम्। अस्य। यन्ता। सूक्तस्येति सुऽउक्तस्य। बोधि। तनयम्। च। जिन्व ॥ विश्वम्। तत्। भद्रम्। यत्। अवन्ति। देवाः। बृहत्। वदेम। विदथे। सुवीरा इति सुऽवीराः ॥५८ ॥