yajurveda/33/87

ऋध॑गि॒त्था स मर्त्यः॑ शश॒मे दे॒वता॑तये।यो नू॒नं मि॒त्रावरु॑णाव॒भिष्ट॑यऽआच॒क्रे ह॒व्यदा॑तये॥८७॥

ऋध॑क्। इ॒त्था। सः। मर्त्यः॑। श॒श॒मे। दे॒वता॑तये॒ इति॑ दे॒वऽता॑तये ॥ यः। नू॒नम्। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒भिष्ट॑ये। आ॒च॒क्रे इत्या॑ऽच॒क्रे। ह॒व्यदा॑तय॒ इति॑ ह॒व्यऽदा॑तये ॥८७ ॥

ऋषिः - जमदग्निर्ऋषिः

देवता - मित्रावरुणौ देवते

छन्दः - निचृद् बृहती

स्वरः - मध्यमः

स्वर सहित मन्त्र

ऋध॑गि॒त्था स मर्त्यः॑ शश॒मे दे॒वता॑तये।यो नू॒नं मि॒त्रावरु॑णाव॒भिष्ट॑यऽआच॒क्रे ह॒व्यदा॑तये॥८७॥

स्वर सहित पद पाठ

ऋध॑क्। इ॒त्था। सः। मर्त्यः॑। श॒श॒मे। दे॒वता॑तये॒ इति॑ दे॒वऽता॑तये ॥ यः। नू॒नम्। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒भिष्ट॑ये। आ॒च॒क्रे इत्या॑ऽच॒क्रे। ह॒व्यदा॑तय॒ इति॑ ह॒व्यऽदा॑तये ॥८७ ॥


स्वर रहित मन्त्र

ऋधगित्था स मर्त्यः शशमे देवतातये।यो नूनं मित्रावरुणावभिष्टयऽआचक्रे हव्यदातये॥८७॥


स्वर रहित पद पाठ

ऋधक्। इत्था। सः। मर्त्यः। शशमे। देवतातये इति देवऽतातये ॥ यः। नूनम्। मित्रावरुणौ। अभिष्टये। आचक्रे इत्याऽचक्रे। हव्यदातय इति हव्यऽदातये ॥८७ ॥