yajurveda/33/37

तत्सूर्य्य॑स्य देव॒त्वं तन्म॑हि॒त्वं म॒ध्या कर्त्तो॒र्वित॑त॒ꣳ सं ज॑भार। य॒देदयु॑क्त ह॒रितः॑ स॒धस्था॒दाद्रात्री॒ वास॑स्तनुते सि॒मस्मै॑॥३७॥

तत्। सूर्य्य॑स्य। दे॒व॒त्वमिति॑ देव॒ऽत्वम्। तत्। म॒हि॒त्वमिति॑ महि॒ऽत्वम्। म॒ध्या। कर्त्तोः॑। वित॑तमिति॑ विऽत॑तम्। सम्। ज॒भा॒र॒ ॥य॒दा। इत्। अयु॑क्त। ह॒रितः॑। स॒धस्था॒दिति॑ स॒धऽस्था॑त। आत्। रात्री॑। वासः॑। त॒नु॒ते॒। सि॒मस्मै॑ ॥३७ ॥

ऋषिः - कुत्स ऋषिः

देवता - सूर्यो देवता

छन्दः - त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

तत्सूर्य्य॑स्य देव॒त्वं तन्म॑हि॒त्वं म॒ध्या कर्त्तो॒र्वित॑त॒ꣳ सं ज॑भार। य॒देदयु॑क्त ह॒रितः॑ स॒धस्था॒दाद्रात्री॒ वास॑स्तनुते सि॒मस्मै॑॥३७॥

स्वर सहित पद पाठ

तत्। सूर्य्य॑स्य। दे॒व॒त्वमिति॑ देव॒ऽत्वम्। तत्। म॒हि॒त्वमिति॑ महि॒ऽत्वम्। म॒ध्या। कर्त्तोः॑। वित॑तमिति॑ विऽत॑तम्। सम्। ज॒भा॒र॒ ॥य॒दा। इत्। अयु॑क्त। ह॒रितः॑। स॒धस्था॒दिति॑ स॒धऽस्था॑त। आत्। रात्री॑। वासः॑। त॒नु॒ते॒। सि॒मस्मै॑ ॥३७ ॥


स्वर रहित मन्त्र

तत्सूर्य्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्त्तोर्विततꣳ सं जभार। यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै॥३७॥


स्वर रहित पद पाठ

तत्। सूर्य्यस्य। देवत्वमिति देवऽत्वम्। तत्। महित्वमिति महिऽत्वम्। मध्या। कर्त्तोः। विततमिति विऽततम्। सम्। जभार ॥यदा। इत्। अयुक्त। हरितः। सधस्थादिति सधऽस्थात। आत्। रात्री। वासः। तनुते। सिमस्मै ॥३७ ॥