yajurveda/32/12

परि॒ द्यावा॑पृथि॒वी स॒द्यऽ इ॒त्वा परि॑ लो॒कान् परि॒ दि॒शः परि॒ स्वः।ऋ॒तस्य॒ तन्तुं॒ वित॑तं वि॒चृत्य॒ तद॑पश्य॒त् तद॑भव॒त् तदा॑सीत्॥१२॥

परि॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॒ द्यावा॑ऽपृथि॒वी। स॒द्यः। इ॒त्वा। परि॑। लो॒कान्। परि॑। दिशः॑। परि॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। ऋ॒तस्य॑। तन्तु॑म्। वित॑त॒मिति॒ विऽत॑तम्। वि॒चृत्येति॑ वि॒ऽचृत्य॑। तत्। अ॒प॒श्य॒त्। तत्। अ॒भ॒व॒त्। तत्। आ॒सी॒त् ॥१२ ॥

ऋषिः - स्वयम्भु ब्रह्म ऋषिः

देवता - परमात्मा देवता

छन्दः - त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

परि॒ द्यावा॑पृथि॒वी स॒द्यऽ इ॒त्वा परि॑ लो॒कान् परि॒ दि॒शः परि॒ स्वः।ऋ॒तस्य॒ तन्तुं॒ वित॑तं वि॒चृत्य॒ तद॑पश्य॒त् तद॑भव॒त् तदा॑सीत्॥१२॥

स्वर सहित पद पाठ

परि॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॒ द्यावा॑ऽपृथि॒वी। स॒द्यः। इ॒त्वा। परि॑। लो॒कान्। परि॑। दिशः॑। परि॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। ऋ॒तस्य॑। तन्तु॑म्। वित॑त॒मिति॒ विऽत॑तम्। वि॒चृत्येति॑ वि॒ऽचृत्य॑। तत्। अ॒प॒श्य॒त्। तत्। अ॒भ॒व॒त्। तत्। आ॒सी॒त् ॥१२ ॥


स्वर रहित मन्त्र

परि द्यावापृथिवी सद्यऽ इत्वा परि लोकान् परि दिशः परि स्वः।ऋतस्य तन्तुं विततं विचृत्य तदपश्यत् तदभवत् तदासीत्॥१२॥


स्वर रहित पद पाठ

परि। द्यावापृथिवी इति द्यावाऽपृथिवी। सद्यः। इत्वा। परि। लोकान्। परि। दिशः। परि। स्व᳖रिति स्वः᳖। ऋतस्य। तन्तुम्। विततमिति विऽततम्। विचृत्येति विऽचृत्य। तत्। अपश्यत्। तत्। अभवत्। तत्। आसीत् ॥१२ ॥