yajurveda/30/4

वि॒भ॒क्तार॑ꣳ हवामहे॒ वसो॑श्चि॒त्रस्य॒ राध॑सः। स॒वि॒तारं॑ नृ॒चक्ष॑सम्॥४॥

वि॒भ॒क्तार॒मिति॑ विऽभ॒क्तार॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। वसोः॑। चि॒त्रस्य॑। राध॑सः। स॒वि॒तार॑म्। नृ॒चक्ष॑स॒मिति॑ नृ॒ऽचक्ष॑सम् ॥४ ॥

ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः

देवता - सविता देवता

छन्दः - गायत्री

स्वरः - षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

वि॒भ॒क्तार॑ꣳ हवामहे॒ वसो॑श्चि॒त्रस्य॒ राध॑सः। स॒वि॒तारं॑ नृ॒चक्ष॑सम्॥४॥

स्वर सहित पद पाठ

वि॒भ॒क्तार॒मिति॑ विऽभ॒क्तार॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। वसोः॑। चि॒त्रस्य॑। राध॑सः। स॒वि॒तार॑म्। नृ॒चक्ष॑स॒मिति॑ नृ॒ऽचक्ष॑सम् ॥४ ॥


स्वर रहित मन्त्र

विभक्तारꣳ हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः। सवितारं नृचक्षसम्॥४॥


स्वर रहित पद पाठ

विभक्तारमिति विऽभक्तारम्। हवामहे। वसोः। चित्रस्य। राधसः। सवितारम्। नृचक्षसमिति नृऽचक्षसम् ॥४ ॥