yajurveda/3/50

दे॒हि मे॒ ददा॑मि ते॒ नि मे॑ धेहि॒ नि ते॑ दधे। नि॒हारं॑ च॒ हरा॑सि मे नि॒हारं॒ निह॑राणि ते॒ स्वाहा॑॥५०॥

दे॒हि। मे॒। ददा॑मि। ते॒। नि। मे॒। धे॒हि॒। नि। ते॒। द॒धे॒। नि॒हार॒मिति॑ नि॒ऽहार॑म्। च॒। हरा॑सि। मे॒। नि॒हार॒मिति॑ नि॒ऽहार॑म्। नि। ह॒रा॒णि॒। ते॒। स्वाहा॑ ॥५०॥

ऋषिः - और्णवाभ ऋषिः

देवता - इन्द्रो देवता

छन्दः - भूरिक् अनुष्टुप्,

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

दे॒हि मे॒ ददा॑मि ते॒ नि मे॑ धेहि॒ नि ते॑ दधे। नि॒हारं॑ च॒ हरा॑सि मे नि॒हारं॒ निह॑राणि ते॒ स्वाहा॑॥५०॥

स्वर सहित पद पाठ

दे॒हि। मे॒। ददा॑मि। ते॒। नि। मे॒। धे॒हि॒। नि। ते॒। द॒धे॒। नि॒हार॒मिति॑ नि॒ऽहार॑म्। च॒। हरा॑सि। मे॒। नि॒हार॒मिति॑ नि॒ऽहार॑म्। नि। ह॒रा॒णि॒। ते॒। स्वाहा॑ ॥५०॥


स्वर रहित मन्त्र

देहि मे ददामि ते नि मे धेहि नि ते दधे। निहारं च हरासि मे निहारं निहराणि ते स्वाहा॥५०॥


स्वर रहित पद पाठ

देहि। मे। ददामि। ते। नि। मे। धेहि। नि। ते। दधे। निहारमिति निऽहारम्। च। हरासि। मे। निहारमिति निऽहारम्। नि। हराणि। ते। स्वाहा ॥५०॥