yajurveda/29/38

जी॒मूत॑स्येव भवति॒ प्रती॑कं॒ यद्व॒र्मी याति॑ स॒मदा॑मु॒पस्थे॑।अना॑विद्धया त॒न्वा जय॒ त्वꣳ स त्वा॒ वर्म॑णो महि॒मा पि॑पर्त्तु॥३८॥

जी॒मूत॑स्ये॒वेति॑ जी॒मूत॑स्यऽइव। भ॒व॒ति॒। प्रती॑कम्। यत्। व॒र्मी। याति॑। स॒मदा॒मिति॑ स॒ऽमदा॑म्। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। अना॑विद्धया। त॒न्वा᳖। ज॒य॒। त्वम्। सः। त्वा॒। वर्म॑णः। म॒हि॒मा। पि॒प॒र्तु॒ ॥३८ ॥

ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः

देवता - विद्वान् देवता

छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

जी॒मूत॑स्येव भवति॒ प्रती॑कं॒ यद्व॒र्मी याति॑ स॒मदा॑मु॒पस्थे॑।अना॑विद्धया त॒न्वा जय॒ त्वꣳ स त्वा॒ वर्म॑णो महि॒मा पि॑पर्त्तु॥३८॥

स्वर सहित पद पाठ

जी॒मूत॑स्ये॒वेति॑ जी॒मूत॑स्यऽइव। भ॒व॒ति॒। प्रती॑कम्। यत्। व॒र्मी। याति॑। स॒मदा॒मिति॑ स॒ऽमदा॑म्। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। अना॑विद्धया। त॒न्वा᳖। ज॒य॒। त्वम्। सः। त्वा॒। वर्म॑णः। म॒हि॒मा। पि॒प॒र्तु॒ ॥३८ ॥


स्वर रहित मन्त्र

जीमूतस्येव भवति प्रतीकं यद्वर्मी याति समदामुपस्थे।अनाविद्धया तन्वा जय त्वꣳ स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्त्तु॥३८॥


स्वर रहित पद पाठ

जीमूतस्येवेति जीमूतस्यऽइव। भवति। प्रतीकम्। यत्। वर्मी। याति। समदामिति सऽमदाम्। उपस्थ इत्युपऽस्थे। अनाविद्धया। तन्वा᳖। जय। त्वम्। सः। त्वा। वर्मणः। महिमा। पिपर्तु ॥३८ ॥