yajurveda/27/33

एक॑या च द॒शभि॑श्च स्वभूते॒ द्वाभ्या॑मि॒ष्टये॑ विꣳश॒ती च॑।ति॒सृभि॑श्च॒ वह॑से त्रि॒ꣳशता॑ च नि॒युद्भि॑र्वायवि॒ह ता वि मु॑ञ्च॥३३॥

एक॑या। च॒। द॒शभि॒रिति॑ द॒शऽभिः॑। च॒। स्व॒भू॒त॒ऽइति॑ स्वऽभूते। द्वाभ्या॑म्। इ॒ष्टये॑। वि॒ꣳश॒ती। च॒। ति॒सृभि॒रिति॑ ति॒सृऽभिः॑। च॒। वह॑से। त्रि॒ꣳशता॑। च॒। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। वा॒यो॒ इति॑ वायो। इ॒ह। ता। वि। मु॒ञ्च॒ ॥३३ ॥

ऋषिः - गृत्समद ऋषिः

देवता - वायुर्देवता

छन्दः - विराट् त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

एक॑या च द॒शभि॑श्च स्वभूते॒ द्वाभ्या॑मि॒ष्टये॑ विꣳश॒ती च॑।ति॒सृभि॑श्च॒ वह॑से त्रि॒ꣳशता॑ च नि॒युद्भि॑र्वायवि॒ह ता वि मु॑ञ्च॥३३॥

स्वर सहित पद पाठ

एक॑या। च॒। द॒शभि॒रिति॑ द॒शऽभिः॑। च॒। स्व॒भू॒त॒ऽइति॑ स्वऽभूते। द्वाभ्या॑म्। इ॒ष्टये॑। वि॒ꣳश॒ती। च॒। ति॒सृभि॒रिति॑ ति॒सृऽभिः॑। च॒। वह॑से। त्रि॒ꣳशता॑। च॒। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। वा॒यो॒ इति॑ वायो। इ॒ह। ता। वि। मु॒ञ्च॒ ॥३३ ॥


स्वर रहित मन्त्र

एकया च दशभिश्च स्वभूते द्वाभ्यामिष्टये विꣳशती च।तिसृभिश्च वहसे त्रिꣳशता च नियुद्भिर्वायविह ता वि मुञ्च॥३३॥


स्वर रहित पद पाठ

एकया। च। दशभिरिति दशऽभिः। च। स्वभूतऽइति स्वऽभूते। द्वाभ्याम्। इष्टये। विꣳशती। च। तिसृभिरिति तिसृऽभिः। च। वहसे। त्रिꣳशता। च। नियुद्भिरिति नियुत्ऽभिः। वायो इति वायो। इह। ता। वि। मुञ्च ॥३३ ॥