yajurveda/25/32

यदश्व॑स्य क्र॒विषो॒ मक्षि॒काश॒ यद्वा॒ स्वरौ॒ स्वधि॑तौ रि॒प्तमस्ति॑।यद्धस्त॑योः शमि॒तुर्यन्न॒खेषु॒ सर्वा॒ ता ते॒ऽअपि॑ दे॒वेष्व॑स्तु॥३२॥

यत्। अश्व॑स्य। क्र॒विषः॑। मक्षि॑का। आश॑। यत्। वा॒। स्वरौ॑। स्वधि॑ता॒विति॒ स्वऽधि॑तौ। रि॒प्तम्। अस्ति॑। यत्। हस्त॑योः। श॒मि॒तुः। यत्। न॒खेषु॑। सर्वा॑। ता। ते॒। अपि॑। दे॒वेषु॑। अ॒स्तु॒ ॥३२ ॥

ऋषिः - गोतम ऋषिः

देवता - यज्ञो देवता

छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

यदश्व॑स्य क्र॒विषो॒ मक्षि॒काश॒ यद्वा॒ स्वरौ॒ स्वधि॑तौ रि॒प्तमस्ति॑।यद्धस्त॑योः शमि॒तुर्यन्न॒खेषु॒ सर्वा॒ ता ते॒ऽअपि॑ दे॒वेष्व॑स्तु॥३२॥

स्वर सहित पद पाठ

यत्। अश्व॑स्य। क्र॒विषः॑। मक्षि॑का। आश॑। यत्। वा॒। स्वरौ॑। स्वधि॑ता॒विति॒ स्वऽधि॑तौ। रि॒प्तम्। अस्ति॑। यत्। हस्त॑योः। श॒मि॒तुः। यत्। न॒खेषु॑। सर्वा॑। ता। ते॒। अपि॑। दे॒वेषु॑। अ॒स्तु॒ ॥३२ ॥


स्वर रहित मन्त्र

यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधितौ रिप्तमस्ति।यद्धस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वा ता तेऽअपि देवेष्वस्तु॥३२॥


स्वर रहित पद पाठ

यत्। अश्वस्य। क्रविषः। मक्षिका। आश। यत्। वा। स्वरौ। स्वधिताविति स्वऽधितौ। रिप्तम्। अस्ति। यत्। हस्तयोः। शमितुः। यत्। नखेषु। सर्वा। ता। ते। अपि। देवेषु। अस्तु ॥३२ ॥