yajurveda/23/56

अ॒जारे॑ पिशङ्गि॒ला श्वा॒वित्कु॑रुपिशङ्गि॒ला।श॒शऽआ॒स्कन्द॑मर्ष॒त्यहिः॒ पन्थां॒ वि स॑र्पति॥५६॥

अ॒जा। अ॒रे॒। पि॒श॒ङ्गि॒ला। श्वा॒वित्। श्व॒विदिति॑ श्व॒ऽवित्। कु॒रु॒पिश॒ङ्गि॒लेति॑ कुरुऽपिशङ्गि॒ला। श॒शः। आ॒स्कन्द॒मित्या॒ऽस्कन्द॑म्। अ॒र्ष॒ति॒। अहिः॑। पन्था॑म्। वि। स॒र्प॒ति॒ ॥५६ ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - समाधाता देवता

छन्दः - स्वराडुष्णिक्

स्वरः - ऋषभः

स्वर सहित मन्त्र

अ॒जारे॑ पिशङ्गि॒ला श्वा॒वित्कु॑रुपिशङ्गि॒ला।श॒शऽआ॒स्कन्द॑मर्ष॒त्यहिः॒ पन्थां॒ वि स॑र्पति॥५६॥

स्वर सहित पद पाठ

अ॒जा। अ॒रे॒। पि॒श॒ङ्गि॒ला। श्वा॒वित्। श्व॒विदिति॑ श्व॒ऽवित्। कु॒रु॒पिश॒ङ्गि॒लेति॑ कुरुऽपिशङ्गि॒ला। श॒शः। आ॒स्कन्द॒मित्या॒ऽस्कन्द॑म्। अ॒र्ष॒ति॒। अहिः॑। पन्था॑म्। वि। स॒र्प॒ति॒ ॥५६ ॥


स्वर रहित मन्त्र

अजारे पिशङ्गिला श्वावित्कुरुपिशङ्गिला।शशऽआस्कन्दमर्षत्यहिः पन्थां वि सर्पति॥५६॥


स्वर रहित पद पाठ

अजा। अरे। पिशङ्गिला। श्वावित्। श्वविदिति श्वऽवित्। कुरुपिशङ्गिलेति कुरुऽपिशङ्गिला। शशः। आस्कन्दमित्याऽस्कन्दम्। अर्षति। अहिः। पन्थाम्। वि। सर्पति ॥५६ ॥