yajurveda/23/40

ऋ॒तव॑स्तऽऋतु॒था पर्व॑ शमि॒तारो॒ विशा॑सतु।सं॒व॒त्स॒रस्य॒ तेज॑सा श॒मीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥४०॥

ऋ॒तवः॑। ते॒। ऋ॒तु॒थेत्यृ॑तु॒ऽथा। पर्व॑। श॒मि॒तारः॑। वि। शा॒स॒तु॒। सं॒व॒त्स॒रस्य॑। तेज॑सा। श॒मीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥४० ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - प्रजा देवता

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

ऋ॒तव॑स्तऽऋतु॒था पर्व॑ शमि॒तारो॒ विशा॑सतु।सं॒व॒त्स॒रस्य॒ तेज॑सा श॒मीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥४०॥

स्वर सहित पद पाठ

ऋ॒तवः॑। ते॒। ऋ॒तु॒थेत्यृ॑तु॒ऽथा। पर्व॑। श॒मि॒तारः॑। वि। शा॒स॒तु॒। सं॒व॒त्स॒रस्य॑। तेज॑सा। श॒मीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥४० ॥


स्वर रहित मन्त्र

ऋतवस्तऽऋतुथा पर्व शमितारो विशासतु।संवत्सरस्य तेजसा शमीभिः शम्यन्तु त्वा॥४०॥


स्वर रहित पद पाठ

ऋतवः। ते। ऋतुथेत्यृतुऽथा। पर्व। शमितारः। वि। शासतु। संवत्सरस्य। तेजसा। शमीभिः। शम्यन्तु। त्वा ॥४० ॥