yajurveda/23/27

ऊ॒र्ध्वमे॑न॒मुच्छ्र॑यताद् गि॒रौ भा॒रꣳ हर॑न्निव। अथा॑स्य॒ मध्य॑मेजतु शी॒ते वाते॑ पु॒नन्नि॑व॥२७॥

ऊ॒र्ध्वम्। ए॒न॒म्। उत्। श्र॒य॒ता॒त्। गि॒रौ। भा॒रम्। हर॑न्नि॒वेति॒ हर॑न्ऽइव। अथ॑। अ॒स्य॒। मध्य॑म्। ए॒ज॒तु॒। शी॒ते। वात॑ पु॒नन्नि॒वेति॑ पु॒नन्ऽइ॑व ॥२७ ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - श्रीर्देवता

छन्दः - अनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

ऊ॒र्ध्वमे॑न॒मुच्छ्र॑यताद् गि॒रौ भा॒रꣳ हर॑न्निव। अथा॑स्य॒ मध्य॑मेजतु शी॒ते वाते॑ पु॒नन्नि॑व॥२७॥

स्वर सहित पद पाठ

ऊ॒र्ध्वम्। ए॒न॒म्। उत्। श्र॒य॒ता॒त्। गि॒रौ। भा॒रम्। हर॑न्नि॒वेति॒ हर॑न्ऽइव। अथ॑। अ॒स्य॒। मध्य॑म्। ए॒ज॒तु॒। शी॒ते। वात॑ पु॒नन्नि॒वेति॑ पु॒नन्ऽइ॑व ॥२७ ॥


स्वर रहित मन्त्र

ऊर्ध्वमेनमुच्छ्रयताद् गिरौ भारꣳ हरन्निव। अथास्य मध्यमेजतु शीते वाते पुनन्निव॥२७॥


स्वर रहित पद पाठ

ऊर्ध्वम्। एनम्। उत्। श्रयतात्। गिरौ। भारम्। हरन्निवेति हरन्ऽइव। अथ। अस्य। मध्यम्। एजतु। शीते। वात पुनन्निवेति पुनन्ऽइव ॥२७ ॥