yajurveda/23/21

उत्स॑क्थ्या॒ऽअव॑ गु॒दं धे॑हि॒ सम॒ञ्जिं चा॑रया वृषन्। य स्त्री॒णां जी॑व॒भोज॑नः॥२१॥

उत्स॑क्थ्या॒ इत्युत्ऽस॑क्थ्याः। अव॑। गु॒दम्। धे॒हि॒। सम्। अ॒ञ्जिम्। चा॒र॒य॒। वृ॒ष॒न्। यः। स्त्री॒णाम्। जी॒व॒भोज॑न॒ इति॑ जीव॒ऽभोज॑नः ॥२१ ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - न्यायधीशो देवता

छन्दः - भुरिग्गायत्री

स्वरः - षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

उत्स॑क्थ्या॒ऽअव॑ गु॒दं धे॑हि॒ सम॒ञ्जिं चा॑रया वृषन्। य स्त्री॒णां जी॑व॒भोज॑नः॥२१॥

स्वर सहित पद पाठ

उत्स॑क्थ्या॒ इत्युत्ऽस॑क्थ्याः। अव॑। गु॒दम्। धे॒हि॒। सम्। अ॒ञ्जिम्। चा॒र॒य॒। वृ॒ष॒न्। यः। स्त्री॒णाम्। जी॒व॒भोज॑न॒ इति॑ जीव॒ऽभोज॑नः ॥२१ ॥


स्वर रहित मन्त्र

उत्सक्थ्याऽअव गुदं धेहि समञ्जिं चारया वृषन्। य स्त्रीणां जीवभोजनः॥२१॥


स्वर रहित पद पाठ

उत्सक्थ्या इत्युत्ऽसक्थ्याः। अव। गुदम्। धेहि। सम्। अञ्जिम्। चारय। वृषन्। यः। स्त्रीणाम्। जीवभोजन इति जीवऽभोजनः ॥२१ ॥