yajurveda/23/16

न वाऽउ॑ऽए॒तन्म्रि॑यसे॒ न रि॑ष्यसि दे॒वाँ२ऽइदे॑षि प॒थिभिः॑ सु॒गेभिः॑। यत्रास॑ते सु॒कृतो॒ यत्र॒ ते य॒युस्तत्र॑ त्वा दे॒वः स॑वि॒ता द॑धातु॥१६॥

न। वै। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। ए॒तत्। म्रि॒यसे॒। न। रि॒ष्य॒सि॒। दे॒वान्। इत्। ए॒षि॒। प॒थिभि॒रिति॒ प॒थिऽभिः॑। सु॒गेभि॒रिति॑ सु॒ऽगेभिः॑। यत्र॑। आस॑ते। सु॒कृत॒ इति॑ सु॒ऽकृतः॑। यत्र॑। ते। य॒युः। तत्र॑। त्वा॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। द॒धा॒तु॒ ॥१६ ॥

ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - सविता देवता

छन्दः - विराडजगती

स्वरः - निषादः

स्वर सहित मन्त्र

न वाऽउ॑ऽए॒तन्म्रि॑यसे॒ न रि॑ष्यसि दे॒वाँ२ऽइदे॑षि प॒थिभिः॑ सु॒गेभिः॑। यत्रास॑ते सु॒कृतो॒ यत्र॒ ते य॒युस्तत्र॑ त्वा दे॒वः स॑वि॒ता द॑धातु॥१६॥

स्वर सहित पद पाठ

न। वै। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। ए॒तत्। म्रि॒यसे॒। न। रि॒ष्य॒सि॒। दे॒वान्। इत्। ए॒षि॒। प॒थिभि॒रिति॒ प॒थिऽभिः॑। सु॒गेभि॒रिति॑ सु॒ऽगेभिः॑। यत्र॑। आस॑ते। सु॒कृत॒ इति॑ सु॒ऽकृतः॑। यत्र॑। ते। य॒युः। तत्र॑। त्वा॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। द॒धा॒तु॒ ॥१६ ॥


स्वर रहित मन्त्र

न वाऽउऽएतन्म्रियसे न रिष्यसि देवाँ२ऽइदेषि पथिभिः सुगेभिः। यत्रासते सुकृतो यत्र ते ययुस्तत्र त्वा देवः सविता दधातु॥१६॥


स्वर रहित पद पाठ

न। वै। ऊँऽइत्यूँ। एतत्। म्रियसे। न। रिष्यसि। देवान्। इत्। एषि। पथिभिरिति पथिऽभिः। सुगेभिरिति सुऽगेभिः। यत्र। आसते। सुकृत इति सुऽकृतः। यत्र। ते। ययुः। तत्र। त्वा। देवः। सविता। दधातु ॥१६ ॥