yajurveda/20/45

वन॒स्पति॒रव॑सृष्टो॒ न पाशै॒स्त्मन्या॑ सम॒ञ्जञ्छ॑मि॒ता न दे॒वः।इन्द्र॑स्य ह॒व्यैर्ज॒ठरं॑ पृणा॒नः स्वदा॑ति य॒ज्ञं मधु॑ना घृ॒तेन॑॥४५॥

वन॒स्पतिः॑। अव॑सृष्ट॒ इत्य॒वऽसृ॑ष्टः। न। पाशैः॑। त्मन्या॑। स॒म॒ञ्जन्निति॑ सम्ऽअ॒ञ्जन्। श॒मि॒ता। न। दे॒वः। इन्द्र॑स्य। ह॒व्यैः। ज॒ठर॑म्। पृ॒णा॒नः। स्वदा॑ति। य॒ज्ञम्। मधु॑ना। घृ॒तेन॑ ॥४५ ॥

ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः

देवता - वनस्पतिर्देवता

छन्दः - त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

वन॒स्पति॒रव॑सृष्टो॒ न पाशै॒स्त्मन्या॑ सम॒ञ्जञ्छ॑मि॒ता न दे॒वः।इन्द्र॑स्य ह॒व्यैर्ज॒ठरं॑ पृणा॒नः स्वदा॑ति य॒ज्ञं मधु॑ना घृ॒तेन॑॥४५॥

स्वर सहित पद पाठ

वन॒स्पतिः॑। अव॑सृष्ट॒ इत्य॒वऽसृ॑ष्टः। न। पाशैः॑। त्मन्या॑। स॒म॒ञ्जन्निति॑ सम्ऽअ॒ञ्जन्। श॒मि॒ता। न। दे॒वः। इन्द्र॑स्य। ह॒व्यैः। ज॒ठर॑म्। पृ॒णा॒नः। स्वदा॑ति। य॒ज्ञम्। मधु॑ना। घृ॒तेन॑ ॥४५ ॥


स्वर रहित मन्त्र

वनस्पतिरवसृष्टो न पाशैस्त्मन्या समञ्जञ्छमिता न देवः।इन्द्रस्य हव्यैर्जठरं पृणानः स्वदाति यज्ञं मधुना घृतेन॥४५॥


स्वर रहित पद पाठ

वनस्पतिः। अवसृष्ट इत्यवऽसृष्टः। न। पाशैः। त्मन्या। समञ्जन्निति सम्ऽअञ्जन्। शमिता। न। देवः। इन्द्रस्य। हव्यैः। जठरम्। पृणानः। स्वदाति। यज्ञम्। मधुना। घृतेन ॥४५ ॥