yajurveda/2/33

आध॑त्त पितरो॒ गर्भं॑ कुमा॒रं पुष्क॑रस्रजम्। यथे॒ह पुरु॒षोऽस॑त्॥३३॥

आ। ध॒त्त॒। पि॒त॒रः॒। गर्भ॑म्। कु॒मा॒रम्। पुष्क॑रस्रज॒मिति॒ पुष्क॑रऽस्रजम्। यथा॑। इ॒ह। पुरु॑षः। अस॑त् ॥३३॥

ऋषिः - वामदेव ऋषिः

देवता - पितरो देवताः

छन्दः - निचृत् गायत्री,

स्वरः - षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

आध॑त्त पितरो॒ गर्भं॑ कुमा॒रं पुष्क॑रस्रजम्। यथे॒ह पुरु॒षोऽस॑त्॥३३॥

स्वर सहित पद पाठ

आ। ध॒त्त॒। पि॒त॒रः॒। गर्भ॑म्। कु॒मा॒रम्। पुष्क॑रस्रज॒मिति॒ पुष्क॑रऽस्रजम्। यथा॑। इ॒ह। पुरु॑षः। अस॑त् ॥३३॥


स्वर रहित मन्त्र

आधत्त पितरो गर्भं कुमारं पुष्करस्रजम्। यथेह पुरुषोऽसत्॥३३॥


स्वर रहित पद पाठ

आ। धत्त। पितरः। गर्भम्। कुमारम्। पुष्करस्रजमिति पुष्करऽस्रजम्। यथा। इह। पुरुषः। असत् ॥३३॥