yajurveda/2/19

घृ॒ताची॑ स्थो॒ धुर्यौ॑ पातꣳ सु॒म्ने स्थः॑ सु॒म्ने मा॑ धत्तम्। य॒ज्ञ नम॑श्च त॒ऽउप॑ च य॒ज्ञस्य॑ शि॒वे सन्ति॑ष्ठस्व॒ स्विष्टे॒ मे॒ संति॑ष्ठस्व॥१९॥

घृ॒ताची॑। स्थः॒। धुर्य्यौ॑। पा॒त॒म्। सु॒म्ने। स्थः॒। सु॒म्ने। मा॒। ध॒त्त॒म्। यज्ञ॑। नमः॑। च॒। ते॒। उप॑। च॒। य॒ज्ञस्य॑। शिवे॑। सम्। ति॒ष्ठ॒स्व॒। स्विष्टे॒ इति॑ सुऽइ॑ष्टे। मे॒। सम्। ति॒ष्ठ॒स्व॒ ॥१९॥

ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः

देवता - अग्निवायू देवते

छन्दः - भूरिक् पङ्क्ति,

स्वरः - पञ्चमः

स्वर सहित मन्त्र

घृ॒ताची॑ स्थो॒ धुर्यौ॑ पातꣳ सु॒म्ने स्थः॑ सु॒म्ने मा॑ धत्तम्। य॒ज्ञ नम॑श्च त॒ऽउप॑ च य॒ज्ञस्य॑ शि॒वे सन्ति॑ष्ठस्व॒ स्विष्टे॒ मे॒ संति॑ष्ठस्व॥१९॥

स्वर सहित पद पाठ

घृ॒ताची॑। स्थः॒। धुर्य्यौ॑। पा॒त॒म्। सु॒म्ने। स्थः॒। सु॒म्ने। मा॒। ध॒त्त॒म्। यज्ञ॑। नमः॑। च॒। ते॒। उप॑। च॒। य॒ज्ञस्य॑। शिवे॑। सम्। ति॒ष्ठ॒स्व॒। स्विष्टे॒ इति॑ सुऽइ॑ष्टे। मे॒। सम्। ति॒ष्ठ॒स्व॒ ॥१९॥


स्वर रहित मन्त्र

घृताची स्थो धुर्यौ पातꣳ सुम्ने स्थः सुम्ने मा धत्तम्। यज्ञ नमश्च तऽउप च यज्ञस्य शिवे सन्तिष्ठस्व स्विष्टे मे संतिष्ठस्व॥१९॥


स्वर रहित पद पाठ

घृताची। स्थः। धुर्य्यौ। पातम्। सुम्ने। स्थः। सुम्ने। मा। धत्तम्। यज्ञ। नमः। च। ते। उप। च। यज्ञस्य। शिवे। सम्। तिष्ठस्व। स्विष्टे इति सुऽइष्टे। मे। सम्। तिष्ठस्व ॥१९॥