yajurveda/19/76

रेतो॒ मूत्रं॒ विज॑हाति॒ योनिं॑ प्रवि॒शदि॑न्द्रि॒यम्। गर्भो ज॒रायु॒णावृ॑त॒ऽउल्बं॑ जहाति॒ जन्म॑ना। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७६॥

रेतः॑। मूत्र॑म्। वि। ज॒हा॒ति॒। योनि॑म्। प्र॒वि॒शदिति॑ प्रऽवि॒शत्। इ॒न्द्रि॒यम्। गर्भः॑। ज॒रायु॑णा। आवृ॑त॒ इत्यावृ॑तः। उल्व॑म्। ज॒हा॒ति॒। जन्म॑ना। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७६ ॥

ऋषिः - शङ्ख ऋषिः

देवता - इन्द्रो देवता

छन्दः - भुरिगतिशक्वरी

स्वरः - पञ्चमः

स्वर सहित मन्त्र

रेतो॒ मूत्रं॒ विज॑हाति॒ योनिं॑ प्रवि॒शदि॑न्द्रि॒यम्। गर्भो ज॒रायु॒णावृ॑त॒ऽउल्बं॑ जहाति॒ जन्म॑ना। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७६॥

स्वर सहित पद पाठ

रेतः॑। मूत्र॑म्। वि। ज॒हा॒ति॒। योनि॑म्। प्र॒वि॒शदिति॑ प्रऽवि॒शत्। इ॒न्द्रि॒यम्। गर्भः॑। ज॒रायु॑णा। आवृ॑त॒ इत्यावृ॑तः। उल्व॑म्। ज॒हा॒ति॒। जन्म॑ना। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७६ ॥


स्वर रहित मन्त्र

रेतो मूत्रं विजहाति योनिं प्रविशदिन्द्रियम्। गर्भो जरायुणावृतऽउल्बं जहाति जन्मना। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥७६॥


स्वर रहित पद पाठ

रेतः। मूत्रम्। वि। जहाति। योनिम्। प्रविशदिति प्रऽविशत्। इन्द्रियम्। गर्भः। जरायुणा। आवृत इत्यावृतः। उल्वम्। जहाति। जन्मना। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु ॥७६ ॥