yajurveda/18/62

येन॒ वह॑सि स॒हस्रं॒ येना॑ग्ने सर्ववेद॒सम्। तेने॒मं य॒ज्ञं नो॑ नय॒ स्वर्दे॒वेषु॒ गन्त॑वे॥६२॥

येन॑। वह॑सि। स॒हस्र॑म्। येन॑। अ॒ग्ने॒। स॒र्व॒वे॒द॒समिति॑ सर्वऽवेद॒सम्। तेन॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। नः॒। न॒य॒। स्वः᳖। दे॒वेषु॑। गन्त॑वे ॥६२ ॥

ऋषिः - देवश्रवदेववातावृषी

देवता - विश्वकर्माग्निर्वा देवता

छन्दः - निचृदार्ष्यनुस्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

येन॒ वह॑सि स॒हस्रं॒ येना॑ग्ने सर्ववेद॒सम्। तेने॒मं य॒ज्ञं नो॑ नय॒ स्वर्दे॒वेषु॒ गन्त॑वे॥६२॥

स्वर सहित पद पाठ

येन॑। वह॑सि। स॒हस्र॑म्। येन॑। अ॒ग्ने॒। स॒र्व॒वे॒द॒समिति॑ सर्वऽवेद॒सम्। तेन॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। नः॒। न॒य॒। स्वः᳖। दे॒वेषु॑। गन्त॑वे ॥६२ ॥


स्वर रहित मन्त्र

येन वहसि सहस्रं येनाग्ने सर्ववेदसम्। तेनेमं यज्ञं नो नय स्वर्देवेषु गन्तवे॥६२॥


स्वर रहित पद पाठ

येन। वहसि। सहस्रम्। येन। अग्ने। सर्ववेदसमिति सर्वऽवेदसम्। तेन। इमम्। यज्ञम्। नः। नय। स्वः᳖। देवेषु। गन्तवे ॥६२ ॥