yajurveda/18/60
ऋषिः - विश्वकर्मर्षिः
देवता - प्रजापतिर्देवता
छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ए॒तम्। जा॒ना॒थ॒। प॒र॒मे। व्यो॑म॒न्निति॑ विऽओ॑मन्। देवाः॑। स॒ध॒स्था॒ इति॑ सधऽस्थाः। वि॒द॒। रू॒पम्। अ॒स्य॒। यत्। आ॒गच्छा॒दित्या॒ऽगच्छा॑त्। प॒थिभि॒रिति॒ प॒थिभिः॑। दे॒व॒यानै॒रिति॑ देव॒ऽयानैः॑। इ॒ष्टा॒पू॒र्त्त इती॑ष्टाऽपू॒र्त्ते। कृ॒ण॒वा॒थ॒। आ॒विः। अ॒स्मै॒ ॥६० ॥
एतम्। जानाथ। परमे। व्योमन्निति विऽओमन्। देवाः। सधस्था इति सधऽस्थाः। विद। रूपम्। अस्य। यत्। आगच्छादित्याऽगच्छात्। पथिभिरिति पथिभिः। देवयानैरिति देवऽयानैः। इष्टापूर्त्त इतीष्टाऽपूर्त्ते। कृणवाथ। आविः। अस्मै ॥६० ॥