yajurveda/17/21

या ते॒ धामा॑नि पर॒माणि॒ याऽव॒मा या म॑ध्य॒मा वि॑श्वकर्मन्नु॒तेमा। शिक्षा॒ सखि॑भ्यो ह॒विषि॑ स्वधावः स्व॒यं य॑जस्व त॒न्वं वृधा॒नः॥२१॥

या। ते॒। धामा॑नि। प॒र॒माणि॑। या। अ॒व॒मा। या। म॒ध्य॒मा। वि॒श्व॒क॒र्म॒न्निति॑ विश्वऽकर्मन्। उ॒त। इ॒मा। शिक्ष॑। सखि॑भ्य॒ इति॒ सखि॑ऽभ्यः। ह॒विषि॑। स्व॒धा॒व॒ इति॑ स्वधाऽवः। स्व॒यम्। य॒ज॒स्व॒। त॒न्व᳖म्। वृ॒धा॒नः ॥२१ ॥

ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः

देवता - विश्वकर्मा देवता

छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

या ते॒ धामा॑नि पर॒माणि॒ याऽव॒मा या म॑ध्य॒मा वि॑श्वकर्मन्नु॒तेमा। शिक्षा॒ सखि॑भ्यो ह॒विषि॑ स्वधावः स्व॒यं य॑जस्व त॒न्वं वृधा॒नः॥२१॥

स्वर सहित पद पाठ

या। ते॒। धामा॑नि। प॒र॒माणि॑। या। अ॒व॒मा। या। म॒ध्य॒मा। वि॒श्व॒क॒र्म॒न्निति॑ विश्वऽकर्मन्। उ॒त। इ॒मा। शिक्ष॑। सखि॑भ्य॒ इति॒ सखि॑ऽभ्यः। ह॒विषि॑। स्व॒धा॒व॒ इति॑ स्वधाऽवः। स्व॒यम्। य॒ज॒स्व॒। त॒न्व᳖म्। वृ॒धा॒नः ॥२१ ॥


स्वर रहित मन्त्र

या ते धामानि परमाणि याऽवमा या मध्यमा विश्वकर्मन्नुतेमा। शिक्षा सखिभ्यो हविषि स्वधावः स्वयं यजस्व तन्वं वृधानः॥२१॥


स्वर रहित पद पाठ

या। ते। धामानि। परमाणि। या। अवमा। या। मध्यमा। विश्वकर्मन्निति विश्वऽकर्मन्। उत। इमा। शिक्ष। सखिभ्य इति सखिऽभ्यः। हविषि। स्वधाव इति स्वधाऽवः। स्वयम्। यजस्व। तन्व᳖म्। वृधानः ॥२१ ॥