yajurveda/17/16

अ॒ग्निस्ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॒ यास॒द्विश्वं॒ न्यत्रिण॑म्। अ॒ग्निर्नो॑ वनते र॒यिम्॥१६॥

अ॒ग्निः ति॒ग्मेन॑। शो॒चिषा॑। यास॑त्। विश्व॑म्। नि। अ॒त्रिण॑म्। अ॒ग्निः। नः॒। व॒न॒ते॒। र॒यिम् ॥१६ ॥

ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - निचृदार्षी गायत्री

स्वरः - षड्जः

स्वर सहित मन्त्र

अ॒ग्निस्ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॒ यास॒द्विश्वं॒ न्यत्रिण॑म्। अ॒ग्निर्नो॑ वनते र॒यिम्॥१६॥

स्वर सहित पद पाठ

अ॒ग्निः ति॒ग्मेन॑। शो॒चिषा॑। यास॑त्। विश्व॑म्। नि। अ॒त्रिण॑म्। अ॒ग्निः। नः॒। व॒न॒ते॒। र॒यिम् ॥१६ ॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्निस्तिग्मेन शोचिषा यासद्विश्वं न्यत्रिणम्। अग्निर्नो वनते रयिम्॥१६॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्निः तिग्मेन। शोचिषा। यासत्। विश्वम्। नि। अत्रिणम्। अग्निः। नः। वनते। रयिम् ॥१६ ॥