yajurveda/15/40

येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सहोऽव॑ स्थि॒रा त॑नुहि॒ भूरि॒ शर्ध॑ताम्। व॒नेमा॑ तेऽअ॒भिष्टि॑भिः॥४०॥

येन॑। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। सा॒सहः॑। स॒सह॒ इति॑ स॒सहः॑। अव॑। स्थि॒रा। त॒नु॒हि॒। भूरि॑। शर्ध॑ताम्। व॒नेम॑। ते॒। अ॒भिष्टि॑भि॒रित्य॒भिष्टि॑ऽभिः ॥४० ॥

ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - निचृदुष्णिक्

स्वरः - ऋषभः

स्वर सहित मन्त्र

येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सहोऽव॑ स्थि॒रा त॑नुहि॒ भूरि॒ शर्ध॑ताम्। व॒नेमा॑ तेऽअ॒भिष्टि॑भिः॥४०॥

स्वर सहित पद पाठ

येन॑। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। सा॒सहः॑। स॒सह॒ इति॑ स॒सहः॑। अव॑। स्थि॒रा। त॒नु॒हि॒। भूरि॑। शर्ध॑ताम्। व॒नेम॑। ते॒। अ॒भिष्टि॑भि॒रित्य॒भिष्टि॑ऽभिः ॥४० ॥


स्वर रहित मन्त्र

येना समत्सु सासहोऽव स्थिरा तनुहि भूरि शर्धताम्। वनेमा तेऽअभिष्टिभिः॥४०॥


स्वर रहित पद पाठ

येन। समत्स्विति समत्ऽसु। सासहः। ससह इति ससहः। अव। स्थिरा। तनुहि। भूरि। शर्धताम्। वनेम। ते। अभिष्टिभिरित्यभिष्टिऽभिः ॥४० ॥