yajurveda/15/11

वि॒राड॑सि॒ दक्षि॑णा॒ दिग्रु॒द्रास्ते॑ दे॒वाऽअधि॑पतय॒ऽइन्द्रो॑ हेती॒नां प्र॑तिध॒र्त्ता प॑ञ्चद॒शस्त्वा॒ स्तोमः॑ पृथि॒व्या श्र॑यतु॒ प्रऽउ॑गमु॒क्थमव्य॑थायै स्तभ्नातु बृ॒हत्साम॒ प्रति॑ष्ठित्याऽअ॒न्तरि॑क्ष॒ऽऋष॑यस्त्वा प्रथम॒जा दे॒वेषु॑ दि॒वो मात्र॑या वरि॒म्णा प्र॑थन्तु विध॒र्त्ता चा॒यमधि॑पतिश्च॒ ते त्वा॒ सर्वे॑ संविदा॒ना नाक॑स्य पृ॒ष्ठे स्व॒र्गे लो॒के यज॑मानं च सादयन्तु॥११॥

वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। अ॒सि॒। दक्षि॑णा। दिक्। रु॒द्राः। ते॒। दे॒वाः। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतयः। इन्द्रः॑। हे॒ती॒नाम्। प्र॒ति॒ध॒र्त्तेति॑ प्रतिऽध॒र्त्ता। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ पञ्चऽद॒शः। त्वा॒। स्तोमः॑। पृ॒थि॒व्याम्। श्र॒य॒तु॒। प्रऽउ॑गम्। उ॒क्थम्। अव्य॑थायै। स्त॒भ्ना॒तु॒। बृ॒हत्। साम॑। प्रति॑ष्ठित्यै। प्रतिस्थित्या॒ इति॒ प्रति॑ऽस्थित्यै। अ॒न्तरि॑क्षे। ऋ॑षयः। त्वा॒। प्र॒थ॒म॒जा इति प्रथम॒ऽजाः। दे॒वेषु॑। दि॒वः। मात्र॑या। व॒रि॒म्णा। प्र॒थ॒न्तु॒। वि॒ध॒र्त्तेति॑ विऽध॒र्त्ता। च॒। अ॒यम्। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। च॒। ते। त्वा॒। सर्वे॑। सं॒वि॒दा॒ना इति॑ सम्ऽविदा॒नाः। नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। स्व॒र्ग इति॑ स्वः॒ऽगे। लो॒के। यज॑मानम्। च॒। सा॒द॒य॒न्तु॒ ॥११ ॥

ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः

देवता - रुद्रा देवताः

छन्दः - भुरिग्ब्राह्मी त्रिष्टुप्, ब्राह्मी बृहती

स्वरः - धैवतः, मध्यमः

स्वर सहित मन्त्र

वि॒राड॑सि॒ दक्षि॑णा॒ दिग्रु॒द्रास्ते॑ दे॒वाऽअधि॑पतय॒ऽइन्द्रो॑ हेती॒नां प्र॑तिध॒र्त्ता प॑ञ्चद॒शस्त्वा॒ स्तोमः॑ पृथि॒व्या श्र॑यतु॒ प्रऽउ॑गमु॒क्थमव्य॑थायै स्तभ्नातु बृ॒हत्साम॒ प्रति॑ष्ठित्याऽअ॒न्तरि॑क्ष॒ऽऋष॑यस्त्वा प्रथम॒जा दे॒वेषु॑ दि॒वो मात्र॑या वरि॒म्णा प्र॑थन्तु विध॒र्त्ता चा॒यमधि॑पतिश्च॒ ते त्वा॒ सर्वे॑ संविदा॒ना नाक॑स्य पृ॒ष्ठे स्व॒र्गे लो॒के यज॑मानं च सादयन्तु॥११॥

स्वर सहित पद पाठ

वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। अ॒सि॒। दक्षि॑णा। दिक्। रु॒द्राः। ते॒। दे॒वाः। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतयः। इन्द्रः॑। हे॒ती॒नाम्। प्र॒ति॒ध॒र्त्तेति॑ प्रतिऽध॒र्त्ता। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ पञ्चऽद॒शः। त्वा॒। स्तोमः॑। पृ॒थि॒व्याम्। श्र॒य॒तु॒। प्रऽउ॑गम्। उ॒क्थम्। अव्य॑थायै। स्त॒भ्ना॒तु॒। बृ॒हत्। साम॑। प्रति॑ष्ठित्यै। प्रतिस्थित्या॒ इति॒ प्रति॑ऽस्थित्यै। अ॒न्तरि॑क्षे। ऋ॑षयः। त्वा॒। प्र॒थ॒म॒जा इति प्रथम॒ऽजाः। दे॒वेषु॑। दि॒वः। मात्र॑या। व॒रि॒म्णा। प्र॒थ॒न्तु॒। वि॒ध॒र्त्तेति॑ विऽध॒र्त्ता। च॒। अ॒यम्। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। च॒। ते। त्वा॒। सर्वे॑। सं॒वि॒दा॒ना इति॑ सम्ऽविदा॒नाः। नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। स्व॒र्ग इति॑ स्वः॒ऽगे। लो॒के। यज॑मानम्। च॒। सा॒द॒य॒न्तु॒ ॥११ ॥


स्वर रहित मन्त्र

विराडसि दक्षिणा दिग्रुद्रास्ते देवाऽअधिपतयऽइन्द्रो हेतीनां प्रतिधर्त्ता पञ्चदशस्त्वा स्तोमः पृथिव्या श्रयतु प्रऽउगमुक्थमव्यथायै स्तभ्नातु बृहत्साम प्रतिष्ठित्याऽअन्तरिक्षऽऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्त्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे संविदाना नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानं च सादयन्तु॥११॥


स्वर रहित पद पाठ

विराडिति विऽराट्। असि। दक्षिणा। दिक्। रुद्राः। ते। देवाः। अधिपतय इत्यधिऽपतयः। इन्द्रः। हेतीनाम्। प्रतिधर्त्तेति प्रतिऽधर्त्ता। पञ्चदश इति पञ्चऽदशः। त्वा। स्तोमः। पृथिव्याम्। श्रयतु। प्रऽउगम्। उक्थम्। अव्यथायै। स्तभ्नातु। बृहत्। साम। प्रतिष्ठित्यै। प्रतिस्थित्या इति प्रतिऽस्थित्यै। अन्तरिक्षे। ऋषयः। त्वा। प्रथमजा इति प्रथमऽजाः। देवेषु। दिवः। मात्रया। वरिम्णा। प्रथन्तु। विधर्त्तेति विऽधर्त्ता। च। अयम्। अधिपतिरित्यधिऽपतिः। च। ते। त्वा। सर्वे। संविदाना इति सम्ऽविदानाः। नाकस्य। पृष्ठे। स्वर्ग इति स्वःऽगे। लोके। यजमानम्। च। सादयन्तु ॥११ ॥