yajurveda/13/55
ऋषिः - उशना ऋषिः
देवता - प्रजापतिर्देवता
छन्दः - निचृदतिधृतिः
स्वरः - षड्जः
अ॒यम्। द॒क्षि॒णा। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। तस्य॑। मनः॑। वै॒श्व॒क॒र्म॒णमिति॑ वैश्वऽक॒र्म॒णम्। ग्री॒ष्मः। मा॒न॒सः। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। ग्रैष्मी॑। त्रि॒ष्टुभः॑। त्रि॒स्तुभ॒ इति॑ त्रि॒ऽस्तुभः॑। स्वा॒रम्। स्वा॒रात्। अ॒न्त॒र्या॒म इत्य॑न्तःया॒मः। अ॒न्त॒र्या॒मादित्य॑न्तःऽया॒मात्। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ प॒ञ्च॒ऽद॒शः। प॒ञ्च॒द॒शादिति॑ पञ्चऽद॒शात्। बृ॒हत्। भ॒रद्वा॑ज॒ इति॑ भ॒रत्ऽवा॑जः। ऋषिः॑। प्र॒जाप॑तिगृहीत॒येति॑ प्र॒जाप॑तिऽगृहीतया। त्वया॑। मनः॑। गृ॒ह्णा॒मि॒। प्र॒जाभ्य॒ इति॑ प्र॒ऽजाभ्यः॑ ॥५५ ॥
अयम्। दक्षिणा। विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। तस्य। मनः। वैश्वकर्मणमिति वैश्वऽकर्मणम्। ग्रीष्मः। मानसः। त्रिष्टुप्। त्रिस्तुबिति त्रिऽस्तुप्। ग्रैष्मी। त्रिष्टुभः। त्रिस्तुभ इति त्रिऽस्तुभः। स्वारम्। स्वारात्। अन्तर्याम इत्यन्तःयामः। अन्तर्यामादित्यन्तःऽयामात्। पञ्चदश इति पञ्चऽदशः। पञ्चदशादिति पञ्चऽदशात्। बृहत्। भरद्वाज इति भरत्ऽवाजः। ऋषिः। प्रजापतिगृहीतयेति प्रजापतिऽगृहीतया। त्वया। मनः। गृह्णामि। प्रजाभ्य इति प्रऽजाभ्यः ॥५५ ॥