yajurveda/13/47
ऋषिः - विरूप ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - विराड ब्राह्मी पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
इ॒मम्। मा। हि॒ꣳसीः॒। द्वि॒पाद॒मिति द्वि॒ऽपाद॑म्। प॒शुम्। स॒ह॒स्रा॒क्ष इति॑ सहस्रऽअ॒क्षः। मेधा॑य। ची॒यमा॑नः। म॒युम्। प॒शुम्। मेध॑म्। अ॒ग्ने। जु॒ष॒स्व॒। तेन॑। चि॒न्वा॒नः। त॒न्वः᳖। नि। सी॒द॒। म॒युम्। ते॒। शुक्। ऋ॒च्छ॒तु॒। यम्। द्वि॒ष्मः। तम्। ते॒। शुक्। ऋ॒च्छ॒तु॒ ॥४७ ॥
इमम्। मा। हिꣳसीः। द्विपादमिति द्विऽपादम्। पशुम्। सहस्राक्ष इति सहस्रऽअक्षः। मेधाय। चीयमानः। मयुम्। पशुम्। मेधम्। अग्ने। जुषस्व। तेन। चिन्वानः। तन्वः᳖। नि। सीद। मयुम्। ते। शुक्। ऋच्छतु। यम्। द्विष्मः। तम्। ते। शुक्। ऋच्छतु ॥४७ ॥