yajurveda/13/16

ध्रु॒वासि॑ ध॒रुणास्तृ॑ता वि॒श्वक॑र्मणा। मा त्वा॑ समु॒द्रऽ उद्व॑धी॒न्मा सु॑प॒र्णोऽअव्य॑थमाना पृथि॒वीं दृ॑ꣳह॥१६॥

ध्रु॒वा। अ॒सि॒। ध॒रुणा॑। आस्तृ॒तेत्याऽस्तृ॑ता। वि॒श्वक॑र्म॒णेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणा। मा। त्वा॒। स॒मु॒द्रः। उत्। व॒धी॒त्। मा। सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। अव्य॑थमाना। पृ॒थि॒वीम्। दृ॒ꣳह॒ ॥१६ ॥

ऋषिः - त्रिशिरा ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - स्वराडार्ष्यनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

ध्रु॒वासि॑ ध॒रुणास्तृ॑ता वि॒श्वक॑र्मणा। मा त्वा॑ समु॒द्रऽ उद्व॑धी॒न्मा सु॑प॒र्णोऽअव्य॑थमाना पृथि॒वीं दृ॑ꣳह॥१६॥

स्वर सहित पद पाठ

ध्रु॒वा। अ॒सि॒। ध॒रुणा॑। आस्तृ॒तेत्याऽस्तृ॑ता। वि॒श्वक॑र्म॒णेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणा। मा। त्वा॒। स॒मु॒द्रः। उत्। व॒धी॒त्। मा। सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। अव्य॑थमाना। पृ॒थि॒वीम्। दृ॒ꣳह॒ ॥१६ ॥


स्वर रहित मन्त्र

ध्रुवासि धरुणास्तृता विश्वकर्मणा। मा त्वा समुद्रऽ उद्वधीन्मा सुपर्णोऽअव्यथमाना पृथिवीं दृꣳह॥१६॥


स्वर रहित पद पाठ

ध्रुवा। असि। धरुणा। आस्तृतेत्याऽस्तृता। विश्वकर्मणेति विश्वऽकर्मणा। मा। त्वा। समुद्रः। उत्। वधीत्। मा। सुपर्ण इति सुऽपर्णः। अव्यथमाना। पृथिवीम्। दृꣳह ॥१६ ॥