yajurveda/12/65
ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः
देवता - यजमानो देवता
छन्दः - आर्षी जगती
स्वरः - निषादः
यम्। ते॒। दे॒वी। निर्ऋ॑ति॒रिति॒ निःऽऋ॑तिः। आ॒ब॒बन्धेत्या॑ऽब॒बन्ध॑। पाश॑म्। ग्री॒वासु॑। अ॒वि॒चृ॒त्यमित्य॑विऽचृ॒त्यम्। तम्। ते॒। वि। स्या॒मि॒। आयु॑षः। न। मध्या॑त्। अथ॑। ए॒तम्। पि॒तुम्। अ॒द्धि॒। प्रसू॑त॒ इति॒ प्रऽसू॑तः। नमः॑। भूत्यै॑। या। इ॒दम्। च॒कार॑ ॥६५ ॥
यम्। ते। देवी। निर्ऋतिरिति निःऽऋतिः। आबबन्धेत्याऽबबन्ध। पाशम्। ग्रीवासु। अविचृत्यमित्यविऽचृत्यम्। तम्। ते। वि। स्यामि। आयुषः। न। मध्यात्। अथ। एतम्। पितुम्। अद्धि। प्रसूत इति प्रऽसूतः। नमः। भूत्यै। या। इदम्। चकार ॥६५ ॥