yajurveda/12/49

अग्ने॑ दि॒वोऽअर्ण॒मच्छा॑ जिगा॒स्यच्छा॑ दे॒वाँ२ऽऊ॑चिषे॒ धिष्ण्या॒ ये। या रो॑च॒ने प॒रस्ता॒त् सूर्य॑स्य॒ याश्चा॒वस्ता॑दुप॒तिष्ठ॑न्त॒ऽआपः॑॥४९॥

अग्ने॑। दि॒वः। अर्ण॑म्। अच्छ॑। जि॒गा॒सि॒। अच्छ॑। दे॒वान्। ऊ॒चि॒षे॒। धिष्ण्याः॑। ये। याः। रो॒च॒ने। प॒रस्ता॑त्। सूर्य॑स्य। याः। च॒। अ॒वस्ता॑त्। उ॒प॒तिष्ठ॑न्त॒ इत्यु॑प॒ऽतिष्ठ॑न्ते। आपः॑ ॥४९ ॥

ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः

स्वरः - पञ्चमः

स्वर सहित मन्त्र

अग्ने॑ दि॒वोऽअर्ण॒मच्छा॑ जिगा॒स्यच्छा॑ दे॒वाँ२ऽऊ॑चिषे॒ धिष्ण्या॒ ये। या रो॑च॒ने प॒रस्ता॒त् सूर्य॑स्य॒ याश्चा॒वस्ता॑दुप॒तिष्ठ॑न्त॒ऽआपः॑॥४९॥

स्वर सहित पद पाठ

अग्ने॑। दि॒वः। अर्ण॑म्। अच्छ॑। जि॒गा॒सि॒। अच्छ॑। दे॒वान्। ऊ॒चि॒षे॒। धिष्ण्याः॑। ये। याः। रो॒च॒ने। प॒रस्ता॑त्। सूर्य॑स्य। याः। च॒। अ॒वस्ता॑त्। उ॒प॒तिष्ठ॑न्त॒ इत्यु॑प॒ऽतिष्ठ॑न्ते। आपः॑ ॥४९ ॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्ने दिवोऽअर्णमच्छा जिगास्यच्छा देवाँ२ऽऊचिषे धिष्ण्या ये। या रोचने परस्तात् सूर्यस्य याश्चावस्तादुपतिष्ठन्तऽआपः॥४९॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने। दिवः। अर्णम्। अच्छ। जिगासि। अच्छ। देवान्। ऊचिषे। धिष्ण्याः। ये। याः। रोचने। परस्तात्। सूर्यस्य। याः। च। अवस्तात्। उपतिष्ठन्त इत्युपऽतिष्ठन्ते। आपः ॥४९ ॥