yajurveda/12/44

पुन॑स्त्वादि॒त्या रु॒द्रा वस॑वः॒ समि॑न्धतां॒ पुन॑र्ब्र॒ह्माणो॑ वसुनीथ य॒ज्ञैः। घृ॒तेन॒ त्वं त॒न्वं वर्धयस्व स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामाः॑॥४४॥

पुन॒रिति॒ पुनः॑। त्वा॒। आ॒दि॒त्याः। रु॒द्राः। वस॑वः। सम्। इ॒न्ध॒ता॒म्। पुनः॑। ब्र॒ह्माणः॑। व॒सु॒नी॒थेति॑ वसुऽनीथ। य॒ज्ञैः। घृ॒तेन॑। त्वम्। त॒न्व᳖म्। व॒र्ध॒य॒स्व॒। स॒त्याः। स॒न्तु। यज॑मानस्य। कामाः॑ ॥४४ ॥

ऋषिः - सोमाहुतिर्ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - स्वराडार्षी त्रिष्टुप्

स्वरः - धैवतः

स्वर सहित मन्त्र

पुन॑स्त्वादि॒त्या रु॒द्रा वस॑वः॒ समि॑न्धतां॒ पुन॑र्ब्र॒ह्माणो॑ वसुनीथ य॒ज्ञैः। घृ॒तेन॒ त्वं त॒न्वं वर्धयस्व स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामाः॑॥४४॥

स्वर सहित पद पाठ

पुन॒रिति॒ पुनः॑। त्वा॒। आ॒दि॒त्याः। रु॒द्राः। वस॑वः। सम्। इ॒न्ध॒ता॒म्। पुनः॑। ब्र॒ह्माणः॑। व॒सु॒नी॒थेति॑ वसुऽनीथ। य॒ज्ञैः। घृ॒तेन॑। त्वम्। त॒न्व᳖म्। व॒र्ध॒य॒स्व॒। स॒त्याः। स॒न्तु। यज॑मानस्य। कामाः॑ ॥४४ ॥


स्वर रहित मन्त्र

पुनस्त्वादित्या रुद्रा वसवः समिन्धतां पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञैः। घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः॥४४॥


स्वर रहित पद पाठ

पुनरिति पुनः। त्वा। आदित्याः। रुद्राः। वसवः। सम्। इन्धताम्। पुनः। ब्रह्माणः। वसुनीथेति वसुऽनीथ। यज्ञैः। घृतेन। त्वम्। तन्व᳖म्। वर्धयस्व। सत्याः। सन्तु। यजमानस्य। कामाः ॥४४ ॥