yajurveda/12/4
ऋषिः - श्यावाश्व ऋषिः
देवता - गरुत्मान् देवता
छन्दः - भुरिग्धृतिः
स्वरः - ऋषभः
सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। अ॒सि॒। ग॒रुत्मा॑न्। त्रि॒वृदिति॑ त्रि॒ऽवृत्। ते॒। शिरः॑। गा॒य॒त्रम्। चक्षुः॑। बृ॒ह॒द्र॒थ॒न्त॒रे इति॑ बृहत्ऽरथन्त॒रे। प॒क्षौ। स्तोमः॑। आ॒त्मा। छन्दा॑सि। अङ्गा॑नि। यजू॑षि। नाम॑। साम॑। ते॒। त॒नूः। वा॒म॒दे॒व्यमिति॑ वामऽदे॒व्यम्। य॒ज्ञा॒य॒ज्ञिय॒मिति॑ यज्ञाऽय॒ज्ञिय॑म्। पुच्छ॑म्। धिष्ण्याः॑। श॒फाः। सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। अ॒सि॒। ग॒रुत्मा॑न्। दिव॑म्। ग॒च्छ॒। स्व॑रिति॒ स्वः᳖। प॒त॒ ॥१४ ॥
सुपर्ण इति सुऽपर्णः। असि। गरुत्मान्। त्रिवृदिति त्रिऽवृत्। ते। शिरः। गायत्रम्। चक्षुः। बृहद्रथन्तरे इति बृहत्ऽरथन्तरे। पक्षौ। स्तोमः। आत्मा। छन्दासि। अङ्गानि। यजूषि। नाम। साम। ते। तनूः। वामदेव्यमिति वामऽदेव्यम्। यज्ञायज्ञियमिति यज्ञाऽयज्ञियम्। पुच्छम्। धिष्ण्याः। शफाः। सुपर्ण इति सुऽपर्णः। असि। गरुत्मान्। दिवम्। गच्छ। स्वरिति स्वः᳖। पत ॥१४ ॥