yajurveda/12/3

विश्वा॑ रू॒पाणि॒ प्रति॑मुञ्चते क॒विः प्रासा॑वीद् भ॒द्रं द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे। वि नाक॑मख्यत् सवि॒ता वरे॒ण्योऽनु॑ प्र॒याण॑मु॒षसो॒ विरा॑जति॥३॥

विश्वा॑। रू॒पाणि॑। प्रति॑। मु॒ञ्च॒ते॒। क॒विः। प्र। अ॒सा॒वी॒त्। भ॒द्रम्। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदे॑। चतु॑ष्पदे। चतुः॑पद॒ इति॑ चतुः॑पदे। वि। नाक॑म्। अ॒ख्य॒त्। स॒वि॒ता। वरे॑ण्यः। अनु॑। प्र॒याण॑म्। प्र॒यान॒मिति॑ प्र॒ऽयान॑म्। उ॒षसः॑। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥३ ॥

ऋषिः - श्यावाश्व ऋषिः

देवता - सविता देवता

छन्दः - विराड् जगती

स्वरः - निषादः

स्वर सहित मन्त्र

विश्वा॑ रू॒पाणि॒ प्रति॑मुञ्चते क॒विः प्रासा॑वीद् भ॒द्रं द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे। वि नाक॑मख्यत् सवि॒ता वरे॒ण्योऽनु॑ प्र॒याण॑मु॒षसो॒ विरा॑जति॥३॥

स्वर सहित पद पाठ

विश्वा॑। रू॒पाणि॑। प्रति॑। मु॒ञ्च॒ते॒। क॒विः। प्र। अ॒सा॒वी॒त्। भ॒द्रम्। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदे॑। चतु॑ष्पदे। चतुः॑पद॒ इति॑ चतुः॑पदे। वि। नाक॑म्। अ॒ख्य॒त्। स॒वि॒ता। वरे॑ण्यः। अनु॑। प्र॒याण॑म्। प्र॒यान॒मिति॑ प्र॒ऽयान॑म्। उ॒षसः॑। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥३ ॥


स्वर रहित मन्त्र

विश्वा रूपाणि प्रतिमुञ्चते कविः प्रासावीद् भद्रं द्विपदे चतुष्पदे। वि नाकमख्यत् सविता वरेण्योऽनु प्रयाणमुषसो विराजति॥३॥


स्वर रहित पद पाठ

विश्वा। रूपाणि। प्रति। मुञ्चते। कविः। प्र। असावीत्। भद्रम्। द्विपद इति द्विऽपदे। चतुष्पदे। चतुःपद इति चतुःपदे। वि। नाकम्। अख्यत्। सविता। वरेण्यः। अनु। प्रयाणम्। प्रयानमिति प्रऽयानम्। उषसः। वि। राजति ॥३ ॥