yajurveda/12/11

आ त्वा॑हार्षम॒न्तर॑भूर्ध्रु॒वस्ति॒ष्ठावि॑चाचलिः। विश॑स्त्वा॒ सर्वा॑ वाञ्छन्तु॒ मा त्वद्रा॒ष्ट्रमधि॑भ्रशत्॥११॥

आ। त्वा॒। अ॒हा॒र्ष॒म्। अ॒न्तः। अ॒भूः॒। ध्रु॒वः। ति॒ष्ठ॒। अवि॑चाचलि॒रित्यवि॑ऽचाचलिः। विशः॑। त्वा॒। सर्वाः॑। वा॒ञ्छ॒न्तु॒। मा। त्वत्। रा॒ष्ट्रम्। अधि॑। भ्र॒श॒त् ॥११ ॥

ऋषिः - ध्रुव ऋषिः

देवता - अग्निर्देवता

छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप्

स्वरः - गान्धारः

स्वर सहित मन्त्र

आ त्वा॑हार्षम॒न्तर॑भूर्ध्रु॒वस्ति॒ष्ठावि॑चाचलिः। विश॑स्त्वा॒ सर्वा॑ वाञ्छन्तु॒ मा त्वद्रा॒ष्ट्रमधि॑भ्रशत्॥११॥

स्वर सहित पद पाठ

आ। त्वा॒। अ॒हा॒र्ष॒म्। अ॒न्तः। अ॒भूः॒। ध्रु॒वः। ति॒ष्ठ॒। अवि॑चाचलि॒रित्यवि॑ऽचाचलिः। विशः॑। त्वा॒। सर्वाः॑। वा॒ञ्छ॒न्तु॒। मा। त्वत्। रा॒ष्ट्रम्। अधि॑। भ्र॒श॒त् ॥११ ॥


स्वर रहित मन्त्र

आ त्वाहार्षमन्तरभूर्ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलिः। विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधिभ्रशत्॥११॥


स्वर रहित पद पाठ

आ। त्वा। अहार्षम्। अन्तः। अभूः। ध्रुवः। तिष्ठ। अविचाचलिरित्यविऽचाचलिः। विशः। त्वा। सर्वाः। वाञ्छन्तु। मा। त्वत्। राष्ट्रम्। अधि। भ्रशत् ॥११ ॥