yajurveda/12/100

दी॒र्घायु॑स्तेऽओषधे खनि॒ता यस्मै॑ च त्वा॒ खना॑म्य॒हम्। अथो॒ त्वं दी॒र्घायु॑र्भू॒त्वा श॒तव॑ल्शा॒ विरो॑हतात्॥१००॥

दी॒र्घायु॒रिति॑ दी॒र्घऽआ॑युः। ते॒। ओ॒ष॒धे॒। ख॒नि॒ता। यस्मै॑। च॒। त्वा॒। खना॑मि। अ॒हम्। अथो॒ऽइत्यथो॑। त्वम्। दी॒र्घायु॒रिति॑ दी॒र्घऽआ॑युः। भू॒त्वा। श॒तव॒ल्शेति॑ श॒तऽव॑ल्शा। वि। रो॒ह॒ता॒त् ॥१०० ॥

ऋषिः - वरुण ऋषिः

देवता - वैद्या देवताः

छन्दः - विराड्बृहती

स्वरः - मध्यमः

स्वर सहित मन्त्र

दी॒र्घायु॑स्तेऽओषधे खनि॒ता यस्मै॑ च त्वा॒ खना॑म्य॒हम्। अथो॒ त्वं दी॒र्घायु॑र्भू॒त्वा श॒तव॑ल्शा॒ विरो॑हतात्॥१००॥

स्वर सहित पद पाठ

दी॒र्घायु॒रिति॑ दी॒र्घऽआ॑युः। ते॒। ओ॒ष॒धे॒। ख॒नि॒ता। यस्मै॑। च॒। त्वा॒। खना॑मि। अ॒हम्। अथो॒ऽइत्यथो॑। त्वम्। दी॒र्घायु॒रिति॑ दी॒र्घऽआ॑युः। भू॒त्वा। श॒तव॒ल्शेति॑ श॒तऽव॑ल्शा। वि। रो॒ह॒ता॒त् ॥१०० ॥


स्वर रहित मन्त्र

दीर्घायुस्तेऽओषधे खनिता यस्मै च त्वा खनाम्यहम्। अथो त्वं दीर्घायुर्भूत्वा शतवल्शा विरोहतात्॥१००॥


स्वर रहित पद पाठ

दीर्घायुरिति दीर्घऽआयुः। ते। ओषधे। खनिता। यस्मै। च। त्वा। खनामि। अहम्। अथोऽइत्यथो। त्वम्। दीर्घायुरिति दीर्घऽआयुः। भूत्वा। शतवल्शेति शतऽवल्शा। वि। रोहतात् ॥१०० ॥