yajurveda/11/83

अन्न॑प॒तेऽन्न॑स्य नो देह्यनमी॒वस्य॑ शु॒ष्मिणः॑। प्रप्र॑ दा॒तारं॑ तारिष॒ऽऊर्जं॑ नो धेहि द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे॥८३॥

अन्न॑पत॒ इत्यन्न॑ऽपते। अन्न॑स्य। नः॒। दे॒हि॒। अ॒न॒मी॒वस्य॑। शु॒ष्मिणः॑। प्र॒प्रेति॒ प्रऽप्र॑। दा॒तार॑म्। ता॒रि॒षः॒। ऊर्ज॑म्। नः॒। धे॒हि॒। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदे॑। चतु॑ष्पदे। चतुः॑ऽपद॒ इति॒ चतुः॑ऽपदे ॥८३ ॥

ऋषिः - नाभानेदिष्ठ ऋषिः

देवता - यजमानपुरोहितौ देवते

छन्दः - उपरिष्टाद् बृहती

स्वरः - मध्यमः

स्वर सहित मन्त्र

अन्न॑प॒तेऽन्न॑स्य नो देह्यनमी॒वस्य॑ शु॒ष्मिणः॑। प्रप्र॑ दा॒तारं॑ तारिष॒ऽऊर्जं॑ नो धेहि द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे॥८३॥

स्वर सहित पद पाठ

अन्न॑पत॒ इत्यन्न॑ऽपते। अन्न॑स्य। नः॒। दे॒हि॒। अ॒न॒मी॒वस्य॑। शु॒ष्मिणः॑। प्र॒प्रेति॒ प्रऽप्र॑। दा॒तार॑म्। ता॒रि॒षः॒। ऊर्ज॑म्। नः॒। धे॒हि॒। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदे॑। चतु॑ष्पदे। चतुः॑ऽपद॒ इति॒ चतुः॑ऽपदे ॥८३ ॥


स्वर रहित मन्त्र

अन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः। प्रप्र दातारं तारिषऽऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥८३॥


स्वर रहित पद पाठ

अन्नपत इत्यन्नऽपते। अन्नस्य। नः। देहि। अनमीवस्य। शुष्मिणः। प्रप्रेति प्रऽप्र। दातारम्। तारिषः। ऊर्जम्। नः। धेहि। द्विपद इति द्विऽपदे। चतुष्पदे। चतुःऽपद इति चतुःऽपदे ॥८३ ॥